गई भैंस पानी में

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देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कल लोकसभा में हो रही संविधान पर चर्चा के दौरान संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर पर जिस तरह की टिप्पणी की वह उनकी सबसे बड़ी गलती बन चुकी है। सदन में उनके यह कहने के बाद कि अंबेडकर—अंबेडकर—अंबेडकर की रट लगाना एक फैशन बन चुका है इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों के लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते। उनके इस बयान ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। बात सिर्फ उनके इस बयान के बाद देश भर में हुए प्रदर्शनों तक सीमित नहीं रही। बीते कल शाम प्रदर्शनों के दौरान लखनऊ और गुवाहाटी में दो कांग्रेस युवा कार्यकर्ताओं की लाठी चार्ज में हुई मौत के बाद, बात बहुत आगे तक निकल चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी तक के सफाई देने और अमित शाह के प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद यह मुद्दा और भी अधिक तूल पकड़ चुका है। क्योंकि उन्होंने विपक्ष पर अपने बयान का गलत मतलब निकालने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे को चुनौती दी है कि उनके इस्तीफे से भी उनकी दाल गलने वाली नहीं है। कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी किसी गलती को सुधारने के प्रयास में गलती पर गलती करते चले जाते हैं। वही यहंा वैसा ही कुछ इस मामले में अमित शाह से भी हो रहा है वह कभी विपक्ष पर हमलावर दिखाई दे रहे हैं तो कभी न्यायिक कार्यवाही करने की धमकी दे रहे हैं लेकिन उनके इस बयान से दलित एससी, एसटी वर्ग के लोग और अंबेडकर वादी कितने नाराज हैं तथा इससे भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडें और उसके वोट बैंक पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका उन्हें अंदाजा नहीं है। खैर अब जो होना था वह हो चुका है। अमित शाह भले ही राजनीति के चाणक्य कहे जाते हो लेकिन वह कांग्रेस की घेराबंदी करते—करते एक ऐसी बड़ी गलती कर चुके हैं जैसे कि एक समय में लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना की मजार पर जाकर और वहंा उनकी शान में कसीदे पढ़कर की थी। जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था आज जब संघ और भाजपा में इस बात पर विमर्श हो रहा है कि मोदी के बाद कौन? तथा इसकी लाइन में यूपी के सीएम योगी से लेकर नितिन गडकरी के साथ—साथ अमित शाह का नाम भी चर्चाओं में है उन्हें इस गलती का बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। कहां जाता है कि मुंह से निकली बोली और बंदूक से निकली गोली वापस तो नहीं आती लेकिन अमित शाह के पास इस भूल सुधार का एक मौका था कि जब उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी तो दो शब्द बोलकर कि उनसे गलती या भूल वश ऐसे शब्द मुंह से निकले हैं जिसका उन्हें खेद है तथा इसके लिए वह उन लोगों से माफी मांगते हैं जिनकी भावनाएं उनके बयान से आहत हुई हैं लेकिन अब उन्होंने अहंकारवश या जानबूझकर यह मौका भी खो दिया है वैसे भी भाजपा डॉक्टर अंबेडकर हो या महात्मा गांधी उनके प्रति उनकी कितनी निष्ठा है पूरा देश जानता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महात्मा गांधी पर की गई वह टिप्पणी जिसमें उन्होंने कहा था कि फिल्म बनने से पहले महात्मा गांधी को कौन जानता था, इसका एक उदाहरण है। देखना यह है कि डॉ. अंबेडकर पर की गई टिप्पणी की क्या कीमत अब अमित शाह और भाजपा को चुकानी पड़ती है। अब अगर वह माफी भी मांग लेते हैं तब भी इससे हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं होगी। क्योंकि विपक्ष अब इस मामले पर शांत होकर बैठने वाला नहीं है।

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