जमीनों की लूट

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उत्तराखण्ड में इन दिनों सशक्त भू कानून की मांग को लेकर जो आंदोलन की आग सुलग रही है वह उग्र रूप लेती जा रही है। सत्ता में बैठे नेताओं द्वारा इस आग पर काबू पाने के पुरजोर प्रयास किये जा रहे है। शासन द्वारा राज्य बनने के बाद बाहरी लोगों द्वारा खरीदी गयी जमीनों की कुंडली खंगाली जा रही है। तथा गलत तरीके से खरीदी गयी जमीनों को जब्त करने की कार्यवाही की जा रही है। कहा तो यहंा तक जा रहा है कि इस तरह की जमीनों को सरकार में निहित किया जायेगा। तथा एक निहित भूमि बैक बनाया जायेगा। सरकार दूसरी तरफ लोगों को इस बात का भी भरोसा दिलाने का प्रयास कर रही है कि वह जल्द एक सशक्त भू—कानून लाने जा रही है। जिससे भविष्य में जमीनो की लूटपाट की संभावनाओं को समाप्त किया जा सके। यह बात अलग है कि यह कानून कब लाया जायेगा। इन जमीनों की लूटपाट कैसे हुई किसने करायी और क्यों करायी? इन सवालों पर अभी कोई बात भले ही न कर रहा हो लेकिन इस बात को जानते सभी है कि यह लूटपाट आम आदमी ने नहीं करायी और न की है। इस लूटपाट को करने वाले भी नेता और अधिकारी है तथा कराने वाले भी वहीं है। खास बात यह है कि जब किसी चीज का लाभ कमाने का अनुचित माध्यम बनाया जाता है तो करने और कराने वाले लोगों द्वारा यही प्रचारित किया जाता है कि इससे देश का प्रदेश का भला होगा। तथा इसका लाभ आम आदमी को मिलेगा। जमीनों की अनुचित खरीद फरोख्त का रास्ता पूर्व मुख्यमंंत्री त्रिवेन्द्र सिंह ने नियम कानूनों में जो बदलाव करके खेला था तब भी कुछ ऐसा ही हुआ था। अब पता चल रहा है कि जमीन जिस उद्देश्य के लिए खरीदी गयी थी वैसा किया नहीं गया। जमीन खरीदना और उसका लैंड यूज चेंज कराने का यह खेल शासन प्रशासन की नाक के नीचे होता रहा और किसी को इसकी भनक तक नही लगी हो ऐसा भला कैसे हो सकता है। सच यही है कि सबको इसकी जानकारी थी। और तो और इन जमीनों की लूटपाट के खेल में नेता और अधिकारियों ने भी बहती गंगा मेंं खूब हाथ धोये। दून से लेकर दिल्ली तक नेताओ और उनके सगे संबधियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। ऐसे में अधिकारी भी भला कैसे पीछे रहते? उन्होने भी नगर निगम की पार्को तक की जमीन अपने नाम करा ली। जंगल और अन्य जमीनाेंं की बात करना भी बेमानी है। सवाल यह है कि ऐसे नेताआें और अधिकारियो की जमीनो को भी सरकार निहित करने का साहस दिखायेगी। या फिर मजार और मस्जिदों पर ही बुल्डोजर चलाने तक यह कार्यवाही सीमित रहेगी। राज्य में इस समय निकाय व पंचायत चुनाव होने जा रहे है ऐसे में इसका प्रभाव चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है। यह अलग बात है कि यह प्रभाव कितना ज्यादा या कम पड़ेगा। लेकिन जमीनों की लूटपाट का यह मामला आसानी से निपटने वाला नहीं है इसका अहसास सत्ता मे बैठने वाले नेताओं को भी है।

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