यह विडंबना ही है कि देश अपनी आजादी के अमृत काल में चल रहा है लेकिन देश की राजनीति आज भी अपनी रजत जयंती काल में मंदिर—मस्जिद तथा जाति—धर्म के इर्द—गिर्द ही चक्कर काट रही है। मंडल—कमंडल की इस राजनीति के भंवरजाल में जिस तरह से देश की जनता को नेताओं ने उलझा कर रखा है उससे बाहर निकलने की कोई भी संभावना सौ—सौ कोस तक भी दिखाई नहीं दे रही है। खास बात यह है कि देश के राजनीतिक संविधान की मूल भावना को पीछे धकेल कर धर्म जाति के आधार पर समाज में ऐसे हालात पैदा करते जा रहे हैं जिससे देश के समाज से सामाजिक समरसता समाप्त होती जा रही है व अपनी तकरार और वैमनस्य की भावना बढ़ती जा रही है। इसकी परिणीति किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छी नहीं हो सकती है। भले ही यह कटु सत्य सही लेकिन अपने निजी स्वार्थो में लिपटे नेताओं को इससे कोई सरोकार नहीं है। उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा बीते कल अपने एक फैसले में उत्तरकाशी के जिलाधिकारी और एसएसपी को जारी किए गए हैं कि वह धार्मिक स्थलों की कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करें। हाई कोर्ट द्वारा यह निर्देश बीते 24 अक्टूबर को भटवाड़ी क्षेत्र में एक मस्जिद को हटाने के प्रयासों के बाद हुए बलवे के बाद उसकी सुरक्षा को लेकर दिए गए हैं। जिसे अवैध बताकर कुछ हिंदूवादी संगठनों द्वारा महाआक्रोश रैली निकाली गई थी। दूसरे पक्ष द्वारा अदालत का दरवाजा इसलिए खटखटाया गया है कि इसे लेकर महापंचायत की तैयारी की जा रही थी। यह बात विशेष तौर पर उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड जैसे शांतिपूर्ण वादियों वाले इस राज्य के गठन के बाद और पहले कहीं भी कभी भी इस तरह की कोई घटना नहीं देखी गई थी। लेकिन देश के अन्य राज्यों और क्षेत्रों की तरह उत्तराखंड में भी मंदिर मस्जिद और हिंदू मुस्लिम की राजनीति का मुद्दा हावी होता जा रहा है। उत्तराखंड की राजनीति भी अब इससे अछूती नहीं रह गई है। उत्तरकाशी की भटवाड़ी की इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर पिथौरागढ़ क्षेत्र का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें कुछ भगवाधारी युवक एक मस्जिद के पास जाकर वहां मौजूद लोगों से मस्जिद के कागज दिखाने की मांग कर रहे हैं और उन्हें यह कहकर धमका रहे हैं कि यह देवभूमि है यहां मंदिर बनाये जा सकते हैं यहंा मस्जिद का क्या काम है। भटवाड़ी की जिस मस्जिद को लेकर विवाद है वह हाल फिलहाल बनाई गई मस्जिद नहीं। सरकारी दस्तावेज है कि यह मस्जिद 1969 में बनाई गई थी। तब तक उत्तराखंड तो क्या उत्तर प्रदेश और देश में मस्जिद मंदिर की वैसी राजनीति नहीं थी जैसी बीते कुछ दशकों से देखी जा रही है। उत्तराखंड जो देवभूमि के रूप में जाना जाता है वहां भी अब लव जिहाद और लैंड जिहाद के साथ थूक जिहाद जैसे शब्द प्रभावी ढंग से अस्तित्व में आ चुके हैं जो किसी भी सूरत में उत्तराखंड की सभ्यता व संस्कृति से मेल नहीं खाते हैं। लेकिन अब उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश की तरह मंडल और कमंडल की राजनीति का शिकार होता जा रहा है। खास बात यह है कि राज्य के लोगों के साथ तमाम ऐसी जन समस्याएं हैं जिनके समाधान ढूंढने की जरूरत है लेकिन नेताओं को अब शायद धर्म और जाति के मुद्दे ही ज्यादा रास आ रहे हैं। जिन्हे लेकर समाज अलग धडों में बढ़ता जा रहा है।