युवा शक्ति की दुर्दशा

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भारत युवाओं का देश है। भले ही हाल फिलहाल देश में ताजा जनगणना न होने के कारण इन युवाओं की सटीक संख्या बता पाना मुश्किल हो कि लगभग 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में कितने युवा है। लेकिन भारत की 40 फीसदी से अधिक आबादी युवा है। यह साफ तौर पर समझा जा सकता है कि इन युवाओं के मानसिक और शारीरिक शक्ति की जो ताकत और क्षमता है अगर उसका इस्तेमाल उसकी योग्यता और क्षमता के अनुरूप करने के अवसर उन्हे मुहैया कराये जाये तो इन युवाओं की ताकत देश की दिशा और दशा को बदल सकती है लेकिन यह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूण और दुखद है कि देश में इस युवा शक्ति की जो दुर्दशा हो रही है या युवाओं की जो मिट्टी पलीत हो रही है वैसी स्थिति शायद कभी हुई हो। देश के इन युवाओं के पास कोई काम नहीं है और वह बेरोजगारी की मार झेलते—झेलते या तो आत्महत्याएं कर रहे है या फिर नशे की अंधेरी खाई में कूद कर अपना और अपने परिवार का भविष्य चौपट कर रहे है। या अपराध की दुनियंा में अपना भविष्य तलाश कर रहे है। बरोजगारी की स्थिति क्या है? यह किसी से छिपा नहीं हैं। आज अगर किसी सरकारी विभाग में नौकरी के लिए 10 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की रिक्तियों की विज्ञप्ति प्रकाशित होती है तो उसके सापेक्ष 10 हजार युवाओं की भीड़ लाइन में खड़ी दिखायी देती है। जिसमें 8वीं पास से लेकर डिग्री और डिप्लोमा होल्डरो की संख्या भी एक चौथाई से ज्यादा होती है। बीते कई सालों से सेना में भर्तियंा नही हो रही थी इसका एक जरिया सत्ता में बैठे लोगों द्वारा अग्निपथ जैसी स्कीम लाकर किया गया। इस योजना में भी सिर्फ चार साल की नौकरी पाना इन युवाओं के लिए दुश्वार हो रहा था जबकि वह अच्छी तरह से जान समझ रहे थे कि यह कोई समस्या का समाधान नहीं है। अपनी जिन्दगी बर्बाद करने जैसा ही है। लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार की खूब बखिया उधेड़ी। विपक्ष ने संसद में इस मुद्दे पर सौ सवाल उठाये तो सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। अब तक इस योजना में कई बदलाव किये जा चुके है तथा कई बदलाव किये जा रहे है। लम्बे समय बाद सेना में पूर्णकालिक भर्ती भी अब की जा रही है इस भर्ती में किस तरह युवाओं की भीड़ उमड़ रही है इसकी बानगी हम बिहार और उत्तराखण्ड में युवाओं की उमड़ रही लाखों की भीड़ के रूप में देख रहे है। बिहार की भर्ती कैसिंल किये जाने पर यह युवा उत्तराखण्ड की ओर दौड़ पड़े और हालात यह हो गये है कि पहाड़ के चार जिलो की समूची व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गयी। भगदड़ और पुलिस लाठीचार्ज से लेकर बैरिकेटिंग तोड़ने तक इन युवाओं ने एक अदद नौकरी का अवसर पाने के लिए क्या—क्या नहीं झेला वह सब अब खबरों की सुर्खियों में है। हास्यापद बात यह है कि अच्छे दिन लाने का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार के मंत्री इन युवाओं का यह कहकर मजाक बनाते रहे है कि पकोड़े तलना भी तो रोजगार ही है। सवाल यह है कि जिस देश के युवाओं की हालत ऐसी हो कि एक कांस्टेबल की नौकरी के लिए अपनी जान की बाजी लगाने पर आमादा हो उस देश के युवाओ व समाज का भविष्य क्या होगा।

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