बीते कल अल्मोड़ा के सल्ट में हुए भीषण सड़क हादसे ने 36 लोगों की जान ले ली जबकि गंभीर रूप से घायल कई लोग अभी भी अस्पतालों में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तराखंड जैसे विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्यों में जब कोई सड़क हादसा होता है तो वह अत्यंत ही विनाशक और हृदय विदारक होता है मगर इन हादसों को रोका नहीं जा सकता है तो इनमें थोड़ी बहुत कमी अवश्य लाई जा सकती है। लेकिन विडंबना यह है कि किसी भी ऐसे बड़े हादसे के बाद जो संवेदनशीलता और सतर्कता दिखाई जाती है वह चंद दिनों बाद ही लुप्त हो जाती है। उत्तराखंड जैसे अत्यंत छोटे राज्य में हर साल औसतन 1000 लोगो का सड़क हादसों में जान गवा देना अत्यंत ही चिंतनीय सवाल है लेकिन शासन—प्रशासन द्वारा इस पर चिंतन मंथन करने की बजाय दुर्घटना के बाद मृतकों और घायलों को मुआवजा देने की घोषणा और दो—चार के खिलाफ सस्पेंड जैसी कार्रवाई कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। अल्मोड़ा में जो यात्री बस हादसे का शिकार हुए वह 15 साल पुरानी बस थी। इसकी फिटनेस जांच कब और किसने की इसका पता लगाना भी मुश्किल काम है क्योंकि यह फिटनेस जांच का काम धरातल पर किया ही नहीं जाता है बस औपचारिक तौर पर कागजों पर चिड़िया बैठाने तक ही सीमित होता है। राज्य में अगर सार्वजनिक वाहनों की फिटनेस की जांच की जाए तो आधे से अधिक वाहन अनफिट हो जाएंगे लेकिन वह धड़ल्ले से चल रहे हैं। दुर्घटनाग्रस्त होने वाली यह बस जो 42 सीटर बस थी कोई पहली बार क्षमता से अधिक सवारियां लेकर नहीं जा रही थी यह एक रूटीन काम की तरह है। लेकिन अगर इसका रिकॉर्ड देखा जाए तो परिवहन विभाग ने इसका कभी ओवरलोडिंग में शायद ही चालान किया होगा। 42 सीटर बस में अगर 60 सवारी भरी जाएगी तो नतीजा क्या हो सकते हैं यह तो हमारे सामने है लेकिन ओवरलोडिंग रोकने की जिम्मेदारी जिन पर है वह अधिकारी कहां सो रहे थे। मुख्यमंत्री ने दो एआरटीओ को (पौड़ी—अल्मोड़ा) सस्पेंड कर दिया बड़ी अच्छी बात है लेकिन क्या जिन लोगों की जान इस हादसे में गई इससे उनकी जिंदगी वापस मिल जाएगी। इन 36 लोगों की जान जाने के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है और क्या उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए, लेकिन यह शासन—प्रशासन की हीला हवाली ही है कि किसी के खिलाफ कुछ नहीं होगा जो चले गए उनके अपने चार—चार लाख लेकर चुपचाप अपने घर बैठ जाएंगे और जो सस्पेंड हुए हैं कुछ दे लेकर चंद दिनों बाद फिर बहाल हो जाएंगे। मानसून के दौरान बर्बाद हुई सड़कों को हादसों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए या फिर शासन—प्रशासन में बैठे लोगों को जिन्हें किसी के जीने मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है अथवा उन वाहन स्वामियों व उनके ड्राइवर—कंडक्टरों को जो और अधिक कमाने के लालच में आम आदमी की जान से खिलवाड़ करते हैं। दोषी कोई भी हो इस सड़ी गली व्यवस्था में सुधार की उम्मीद आप किसी से भी नहीं कर सकते हैं। क्योंकि आप उस हिंदुस्तान में रहते हैं जहां सब कुछ राम भरोसे चलता है या फिर दाम के दम पर चलता है। ईश्वर से इस हादसे के मृतकों की आत्मशांति के लिए प्रार्थना कीजिए क्योंकि इसके सिवाय आप कर भी कुछ नहीं सकते हैं।