राजनीति का संक्रमण काल

0
135


देश की राजनीति में कहां क्या चल रहा है कब क्या होने वाला है इसका अंदाजा राजनीतिक पंडितों के लिए भी लगा पाना आसान नहीं रहा है। बीते एक दशक में सीधे तौर पर कहे कि राजनीति का चेहरा मोहरा ही बदल गया है तो यह भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। राजनीति में हर रोज एक से बढ़कर एक बड़ी हैरतअंगेज घटनाएं घट रही है। इसलिए पहली बात तो यह है कि किसी भी दिन पल छिन अगर कोई बड़ा घटनाक्रम भी पेश आता है तो चौकियें मत। जैसा कि अभी बीते दिनों हरियाणा के चुनावी नतीजों को लेकर हुआ था उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभी बीते दिनों एक बात कही थी बटोगे तो कटोगे। उनके इस बयान के क्या मायने हैं इसे लेकर देश के तमाम टीवी चैनलों में कई दिनों से लंबी—लंबी डिबेट हो रही है जो निराधार और आधारहीन है। टीवी चैनलों के टीआरपी लगातार घट रही है अखबार और टीवी चैनल से आम आदमी का भरोसा उठता जा रहा है लोगों का मानना है कि उनकी खबरों में अब न सच्चाई होती है न अच्छाई। चुनावी दौर की बेला में कुछ राज्यों की विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं कहीं और इसका कुछ शोर हो न हो लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जरूर सुनाई दे रहा है। सपा ने बटेंगे तो कटेंगे का जवाब देने के लिए एक नया नारा तलाश किया है जुड़ेंगे तो जीतेंगे। अब यह दोनों ही राजनीतिक विचार चर्चाओं के केंद्र में आ चुके हैं। बात चाहे महाराष्ट्र की हो या फिर छत्तीसगढ़ की। एक बटेंगे तो कटेंगे वाले हैं जो हिंदुओं को डर दिखाकर उनका वोट पाना चाहते हैं और दूसरी ओर जुड़ेंगे तो जीतेंगे वाले हैं। उनका कहना है कि न तो बटेंगे और न कटेंगे जुड़ेंगे और जीतेंगे। चुनावी दौर में एक और अहम बात यह है कि देश में मुफ्त की रेवड़ियों की राजनीति का डंका अब हर दल द्वारा पीटा जा रहा है। भाजपा के शीर्ष नेता जो अब तक इन मुफ्त की रेवड़ी बांटने वालों से सतर्क रहने की नसीहत देते दिखाई देते थे वह भी अब दीदी योजना के अंतर्गत हर महिला के खाते में 2100 रूपये हर माह डालने की घोषणा कर रहे हैं और मुफ्त के रसोई गैस सिलेंडर तो बहुत पहले से बांटने की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री ने अपने यूट्यूब (एक्स) पर कांग्रेस को वायदे करने व पूरा करने का सामर्थ्य न होने की बात कर घेरा तो कांग्रेस ने भी उसके अच्छे दिन आने वाले हैं से लेकर 2 करोड़ हर साल रोजगार और 15 लाख गरीबों के खाते में डालने से लेकर उसकी पूरी कुंडली खोलते हुए कहा कि यह सगूफे थे या वायदे भाजपा के नेता जवाब दे। स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि उन्हें अपने यूट्यूब हैंडल से उस पोस्ट को हटाना पड़ा था जो कांग्रेस के लिए लिखा गया था। इसे भी छोड़िए बात अगर चुनावी व्यवस्था और चुनाव कराने वाली संस्था निर्वाचन आयुक्त की विश्वसनीयता की करें तो आम आदमी का उससे भी भरोसा उठता जा रहा है। सवाल यह है कि ऐसे लोकतंत्र और चुनाव तथा उस राजनीति के वर्तमान और भविष्य के बारे में क्या कहा जा सकता है जिस पर किसी को भरोसा न हो। निसंदेह यह देश के राजनीतिक भविष्य और लोकतंत्र की सुरक्षा के लिहाज से अति चिंतनीय स्थित है। जिसने देश की आम जनता को मुश्किल में लाकर खड़ा कर दिया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here