बताओ तुम्हारी जाति क्या है?

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लोक सभा चुनाव के नतीजो ने तो भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सभी भ्रमो को धराशाही कर ही दिया था लेकिन इसके बाद विपक्ष के तीखे हमलों ने भाजपा के जाति और धर्म से जुड़े उन तमाम मुद्दों की भी हवा निकाल दी है जो अब तक उसकी राजनीतिक सफलता का कारण बनते रहे हैं। भाजपा के नेता न तो चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष के सवालों का कोई माकूल जवाब दे सके और न अब संसद सत्र के दौरान वह अपना बचाव तक ठीक से कर पा रहे हैं। उनकी स्थिति यह हो चुकी है कि हमेशा हमलावर रहने वाली सरकार और भाजपा के नेता इस तरह बौखला चुके हैं कि संसद में खड़े होकर वह विपक्षी नेताओं की जाति पूछने जैसी बड़ी गलतियां कर रहे हैं तथा प्रधानमंत्री मोदी सदन से बाहर रहकर अपने एक्स पर उनकी पीठ थपथपाने और उनके गलत बयानों का समर्थन कर रहे हैं। नेता विपक्ष द्वारा देश में जातीय जनगणना कराने और जिसकी जितनी हिस्सेदारी और उतनी भागीदारी की बात कही जा रही है, के जवाब में कल पूर्व मंत्री और भाजपा नेता अनुराग ठाकुर द्वारा राहुल गांधी का नाम लिए बगैर उन पर यह टिप्पणी की गई कि जिन्हें अपनी जाति का पता नहीं है वह जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं जिसे लेकर संसद में भयंकर हंगामा हुआ। अखिलेश यादव ने सदन में किसी की जाति पूछे जाने पर जब हंगामा किया गया और चुनौती दी गई कि आप जाति पूछ कर तो दिखाओ तब पीठ के हस्तक्षेप से और इसे संसद की कार्रवाई से निकालने के बाद संसद में भले ही शांति हो गई हो लेकिन संसद के बाहर इसे लेकर अब लंबे समय तक हंगामा जारी रहना तय हो चुका है। कांग्रेस के जिस न्याय पत्र का सबसे अहम मुद्दा ही यह था, उस मुद्दे पर अनुराग ठाकुर ने राहुल पर निशाना साध कर और प्रधानमंत्री ने उनकी तारीफ में कसीदे पढ़कर विपक्ष को ऐसा हथियार थमा दिया है कि इससे भाजपा को कितना बड़ा नुकसान हो सकता है इसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकते। राहुल गांधी ने अब सहज भाव से यह स्वीकार कर लिया है कि जो दलित, पिछड़े, गरीब तथा आदिवासियों के हित की लड़ाई लड़ेगा उसे गालियां खानी ही पड़ेगी, वह कहते है कि देने दीजिए वह मुझे जितनी गालियंा देंगे मेरा आत्मविश्वास और मजबूत होगा। हम भारत के लोग आजादी के इन 77 सालों में यह अच्छे से जान चुके हैं की जाति और धर्म के नाम पर देश के नेता किस तरह की राजनीति करते आए हैं। इन नेताओं को न तो महात्मा गांधी के विचारों से कोई सरोकार है और न संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर के उन विचारों से कुछ लेना—देना है जिसमें उन्होंने कहा कि देश के जातीय अलगाववाद को समाप्त करने का सबसे प्रभावी उपाय सिर्फ अंतरजातीय विवाह है जब तक सभी जातियों के बीच रक्त संबंध नहीं बनेंगे जाति—प्रथा और ऊंच नीच और छुआछूत को नहीं मिटाया जा सकता है। अनुराग ठाकुर अगर संसद में किसी से उसकी जाति पूछ रहे हैं और वह भी 21वीं सदी के भारत में तो वह बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। कानूनन किसी को भी किसी की जाति पूछने का अधिकार नहीं है। अगर हम अपनी धार्मिक मान्यताओं की बात भी करें तो हम सभी ने यह सुना होगा की जाती न पूछो साधु की अर्थात साधु संतों की जाति किसी को नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि कोई भी व्यक्ति जाति से नहीं अपने कर्मों से बड़ा या छोटा होता है। मगर विडम्बना देखिए देश के नेताओं के बिना जाति और धर्म के उनके राजनीतिक सरोकार पूरे ही नहीं हो पा रहे हैं। देश के नेता न खुद इस अंधेरे कुएं से बाहर आ पा रहे हैं और न देश की जनता को इससे बाहर आने दे रहे हैं। देखिए कब तक यह तमाशा जारी रहता है।

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