चुनाव से पहले सीएए

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केंद्र सरकार द्वारा बीते कल देर शाम नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 की अधिसूचना जारी कर दी गई जिसके साथ ही पूरे देश में सीएए लागू हो गया है। सीएए को जब सरकार द्वारा संसद में लाया गया था तो उस समय इसका देश की राजधानी से लेकर पूरे देश में मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा भारी विरोध किया गया था। राजधानी दिल्ली का शाइन बाग सीएए के विरोध को लेकर सबसे अधिक चर्चाओं के केंद्र में रहा था। असम, केरल और पश्चिम बंगाल से इस कानून के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए थे जो धीरे—धीरे हिंसक आंदोलन में तब्दील हो गए और इसमें 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। एक बार फिर सरकार द्वारा इसकी अधिसूचना जारी होने के साथ ही इसके विरोध में स्वर सुनाई देने लगे हैं। कुछ राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं तो कुछ राजनीति के दलों के नेताओ ने इसे लोकसभा चुनाव से ऐन पूर्व लाए जाने को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों की सरकारों ने यहां तक घोषणा कर दी है कि वह अपने राज्यों में सीएए को किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे। वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे का कहना है कि लोकसभा चुनाव के समय सीएए को लागू किया जाना भाजपा सरकार का एक विभाजनकारी काम है। कल सरकार द्वारा इसे लागू किए जाने से पहले सभी उन राज्यों में जहां इसे लेकर कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा सरकार द्वारा इस कानून को लोकसभा चुनाव से चंद दिन पहले लाया जाने का काम एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है और वह इसके जरिए वोटो के ध्रुवीकरण की राजनीति करना चाहती है। क्योंकि इस कानून के तहत एक शब्द गैर मुस्लिम विदेशी शरणार्थियों को नागरिकता दिए जाने वाली बात ही ओवैसी जैसे नेताओं और मुसलमान को चुभ रही है। जो विरोध कर रहे हैं उनका कहना है जब सरकार बाहर से आए सभी संप्रदाय के लोगों को नागरिकता देने की बात कर रही है तो फिर इसमें मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया है? सरकार के इस कदम को लेकर सभी लोग अपने—अपने तरीके से इसकी व्याख्या करने में लगे हैं। कुछ लोग इसे मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं और इसे लागू होने से भाजपा के 400 पार के नारे को सच साबित होने की बात कह रहे हैं तो वहीं कुछ लोगों द्वारा इसे इलेक्टोरल बांड घोटाले और चुनाव आयोग तथा ईवीएम के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश भी बता रहे हैं। लेकिन एक बात साफ है भाजपा और बजरंग दल जैसे राजनीतिक दल इस पर जश्न मनाने और मुस्लिम समाज के लोग इसके विरोध में प्रदर्शन के लिए आमने—सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं वह देश का माहौल खराब करने का बड़ा कारण बन सकते हैं। सत्ता में बैठे लोग अगर सामाजिक असुरक्षा का माहौल पैदा कर चुनाव को प्रभावित करना चाहते हैं तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता है। हम यह स्पष्ट कह रहे हैं कि राष्ट्र और समाज हित में सीएए को लागू जरूर किया जाना चाहिए लेकिन इसके लिए अनुकूल सामाजिक वातावरण और अनुकूल समय का ख्याल रखा जाना चाहिए था। जो सरकार द्वारा नहीं रखा गया है। चुनाव से पूर्व अगर असुरक्षा और अशांति का माहौल बनता है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा यह भी सोचने की जरूरत है।

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