भरोसे वाला अनोखा बजट

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कल वित्त मंत्री सीतारमण ने 2024—25 के लिए जो अंतरिम बजट पेश किया है उसमें न तो कोई नया कर लगाया गया है न टैक्स स्लैब में और जीएसटी में कोई बदलाव किया गया है। यही नहीं इस बजट में 2019 के अंतरिम बजट की तरह कोई लोक लुभावन घोषणा भी नहीं की गई। जैसे तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा किसानों को 6000 रूपये सालाना सम्मान निधि देने या 5 लाख तक आय वालों को इनकम टैक्स से बाहर रखकर 3 करोड़ करदाताओं को राहत दी गई थी वैसा इस बार कुछ नहीं किया गया है। स्वाभाविक है की मुफ्त की रेवड़िया मिलने की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को इससे थोड़ी निराशा जरूर हुई होगी। सीतारमण के इस बजट को जो लोग खुद पर भरोसे का बजट बता रहे हैं। उनकी सोच सर्वथा गलत है सरकार ने इस बजट में इसलिए किसी को कुछ नहीं दिया है क्योंकि उसे अपनी 2024 की जीत का पक्का भरोसा है ऐसा कदाचित भी नहीं है। सच यह है कि सरकार के पास अब किसी को कुछ देने के लिए बचा ही नहीं है वह पहले ही इतना लुटा चुकी है कि सरकार कर्ज और बजट के बढ़ते राजकोषीय घाटे को कम करने और कर्ज की अदाएगी के संकट से जूझ रही है। यह हास्यापद ही है कि वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा अपने 58 मिनट के बजटीय भाषण में 40 मिनट का समय सरकार की 10 साल की उपलब्धियों को बताने में निकाल लिया गया वह यह बताती रही कि हमारी जीडीपी की स्थिति क्या है? और आने वाले समय में इसकी 5.8 फीसदी रहने का अनुमान है लेकिन वह प्रति व्यक्ति आय के बारे में एक शब्द भी नहीं बोलते हैं अगर अर्थव्यवस्था में 7 प्रतिशत की दर से इजाफा हो रहा है तो आम आदमी की आय भी उसी हिसाब से बढ़नी चाहिए। लेकिन उसमें सिर्फ डेढ़ से दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सरकार के गणित के हिसाब से देश के लोगों की आय लाख रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक हो चुकी है तो फिर वह कौन से लोग हैं जो गरीबी में जी रहे हैं और सरकार 80 करोड लोगों को मुफ्त का राशन क्यों दे रही है? एक करोड़ जो लखपति दीदिंया बनाई गई है और अब 3 करोड़ दीदियों को लखपति बनाने की बात क्यों की जा रही है? इन दोहरी बातों को समझना आसान नहीं है। सीतारमण के इस बजट में बेरोजगारी पर एक शब्द भी नहीं बोला गया और महंगाई पर सिर्फ इतना कहा गया कि हमने महंगाई को नियंत्रण में रखा है। क्या यह सच है इसका जवाब देश के गरीब ही सही मायने में दे सकते हैं। सत्ता में बैठे लोगों को भले ही यह लग रहा हो कि चुनाव जीतने के लिए राम मंदिर और इंडिया गठबंधन का टूटना ही काफी है उन्हें अब कुछ करने की जरूरत नहीं है। यह बात कर रहे है कि हमने करोड़ों लोगों को गरीबी से मुक्त कर दिया, करोड़ों को पक्के घर दे दिए, हर घर नल पहुंचा दिया, 80 करोड लोगों को मुफ्त राशन व करोड़ों किसानों को 500 रूपये दे रहे हैं यही सब काफी है। सीतारमण ने अपने बजट में विकसित भारत और समावेशी विकास की बात जरूर की है लेकिन लोगों को यह नहीं बताया कि 2047 तक भारत के ऊपर जिस गति से कर्ज बढ़ रहा है वह कितना हो जाएगा। अगर देश की जितनी जीडीपी हो और उतना ही कर्ज भी हो तो फिर क्या किसी ऐसे देश को विकसित देश कहा जा सकता है। विकसित भारत का सच कभी न कभी तो लोगों की समझ में आएगा चुनाव जीतना और सत्ता में बने रहना अलग बात है और जमीनी हकीकत पर पर्दा डालना अलग बात है। कहने भर से साइनिंग इंडिया या विकसित भारत ना साइनिंग इंडिया हो सकता है न भारत विकसित।

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