स्वाभिमान रैली में उलझी भाजपा

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मूल निवास और भू—कानून के मुद्दे अब उत्तराखंड में एक जनांदोलन का आकार लेते दिख रहे हैं। इन मुद्दों पर रविवार को जो स्वाभिमान महारैली का आयोजन हुआ उसकी सफलता ने सत्तारूढ़ भाजपा की पेशानी पर चिंता की लकीरें खींच दी है। स्वाभिमान महारैली के आयोजन वाले दिन भाजपा को अपनी ट्टमोदी है न’ रैली का आयोजन नहीं रखना चाहिए था। लेकिन भाजपा के नेता जो दूसरों से लंबी लकीरें खींचकर प्रतिद्वंदियों की लकीरें छोटा साबित करने के आदी हो चुके हैं उन्हें इस गुमान में नहीं रहना चाहिए कि जो बड़ी—बड़ी लकीरें उन्होंने खींची है वह उन्होंने नहीं खींची है इस देश की आम जनता ने उनसे खिंचवाई हैं और जनता जनार्दन जब चाहे तब इन बड़ी से बड़ी लकीरों को छोटा साबित कर सकती हैं। स्वाभिमान महारैली ने भाजपा की ट्टमोदी है न’ की रैली को जिस तरह बौना साबित कर दिया यह उसका एक उदाहरण भर है। रविवार को निकाली गई इन दो रैलियों ने सुबे की राजनीति के परिदृश्य को बदलकर रख दिया है। स्वाभिमान महारैली जो किसी राजनीतिक दल का शक्ति प्रदर्शन नहीं था बावजूद इसके भी उसमें उमड़ा जन सैलाब भाजपा सरकार को यह बताने में कामयाब रहा है कि सबसे बड़ी ताकत उसी के पास है जो सबसे बड़ी लकीर खींच सकता है। यह उस ताकत का ही नतीजा है कि अब मूल निवास और भू कानून के इन मुद्दों को लपकने के लिए कांग्रेस सहित तमाम छोटे और क्षेत्रीय दल तत्पर दिखाई दे रहे हैं। वही मूल निवास व भू कानून संघर्ष समन्वय समिति अब हल्द्वानी में बहुत जल्द अगली महारैली का आयोजन करने जा रही है। इस रैली के बाद यह भी साफ हो गया है कि इन मुद्दों पर सरकार और मुख्यमंत्री धामी का रवैया और सोच चाहे जो भी रहे हो लेकिन भाजपा नेताओं में भी आम सहमति नहीं है। धर्मपुर विधायक विनोद चमोली जो रविवार को इस महारैली के समय दून में ही थे उन्होंने सार्वजनिक मंच से यह बयान देकर कि वह भले ही शरीर से यहां है लेकिन उनका मन और आत्मा मूल निवास व भू कानून के लिए निकाली जा रही स्वाभिमान महारैली में है। चमोली के इस बयान पर भले ही पार्टी के दूसरे नेता हैरान हो लेकिन उन्होंने अपने मन की बात न सिर्फ बेबाकी के साथ कहीं बल्कि अपने भाषण की 6 मिनट की वीडियो क्लिप को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है। भले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा प्रदेश के लोगों को इस बात का भरोसा दिलाया जा रहा हो कि वह जो भी फैसला लेंगे प्रदेश हित में लेंगे लेकिन क्या धामी के अंदर चमोली की तरह बेबाकी का अंदाज और हौसला आ सकता है। भले ही पार्टी और पार्टी के नेता उनकी बात का मतलब जो चाहे निकाले और उनके बयान के लिए उनके खिलाफ कोई भी कार्यवाही क्यों न करें लेकिन सच कहने और सच के साथ रहने के लिए वह साधुवाद के पात्र हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मूल निवास और भू कानून के ढुलमुल स्थिति के कारण प्रदेश को बड़ा नुकसान हुआ है। जिसे किसी भी हाल में रोके जाने की जरूरत है। लेकिन इसके साथ ही यह मुद्दे अत्यंत ही पेचीदा मुद्दे हैं उदाहरण के लिए मूल निवास के लिए कट आउट डेट 1950 रखने की मांग। 75 साल या 72 साल पहले कौन कहां रहता था यह मांग करने वाले भी नहीं जानते क्योंकि वह भी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी थे। लाखों परिवार ऐसे हैं जो देश के विभाजन के बाद इस राज्य उत्तराखंड की भूमि पर आकर बस गए क्या उन्हें राज्य से बाहर इस आधार पर किया जा सकता है कि वह 1955 के बाद यहां आकर बसे हैं। इस समस्या का विवेक पूर्ण हल जरूरी है लेकिन यह बात जरूरी है कि आने वाले चुनाव के लिए राजनीतिक दंलो वह सूबे के नेताओं को एक ऐसा मुद्दा जरूर हाथ लग गया है जो भाजपा की सरकार व पार्टी के लिए सर दर्द साबित होने वाला है। देखना यह है कि अब भाजपा इसका क्या समाधान खोज पाती है अगर चुनाव से पहले उसने जनहित में समाधान नहीं निकाला तो इससे भाजपा को राजनीतिक नुकसान होना तय है।

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