इस बात में किसी को भी कोई संदेह नहीं है कि उत्तराखंड में पर्यटन की अपरमित और असीमित संभावनाएं हैं। लेकिन पृथक राज्य गठन के बाद इन पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। उत्तराखंड के पर्यटन विकास पर बीते 20 सालों से जितनी बातें होती रही है अगर उसके दसवें हिस्से के बराबर भी काम हुआ होता तो आज उत्तराखंड की आर्थिक और सामाजिक स्थिति कुछ और ही रही होती। उत्तराखंड में सिर्फ चारधाम यात्रा तक पर्यटन को सीमित करके रखा हुआ है। जबकि उत्तराखंड जिसे देवभूमि कहा जाता है कदम—कदम पर ऐतिहासिक और पौराणिक मठ—मंदिर और शक्ति पीठों की एक श्रंखला बिखरी हुई है। सतपाल महाराज जो आज भी पर्यटन मंत्रालय संभाले हुए हैं राज्य के पर्यटन को कभी धार्मिक पर्यटन और योग तथा आध्यात्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की बातें तो करते रहे हैं लेकिन इस दिशा में उन्होंने अब तक किया क्या है? यह अलग बात है। कभी वह टिहरी झील में पनडुब्बी उतारने और उससे पर्यटकों को झील में डूबी पुरानी टिहरी के दर्शन कराने की बात कहते हैं तो कभी राज्य की नदियों में सी प्लेन उतारने की योजना बनाते हैं, लेकिन उनकी बातें सिर्फ बातों तक ही होती है। धरातल पर कहीं कुछ होता नहीं दिखता है। कभी वह चौरासी कुटिया को ध्यान स्थली के रूप में विकसित करवाते दिखते हैं तो कभी राज्य को साहसिक पर्यटन से जोड़ने की बातें करते हैं। दरअसल अब तक कि किसी भी सरकार ने राज्य के पर्यटन विकास के लिए कोई भी ऐसी परियोजना और प्रोग्राम तय ही नहीं किया है जिस पर चरणबद्ध तरीके से काम हो पाता। दून से मसूरी तक रोपवे बनाने की बात बीते 10 सालों से की जा रही है लेकिन अभी तक काम कितना हुआ है इसका कोई जवाब नहीं है। राज्य के ओली में खेलों का आयोजन कराने की योजना और यहंा आइस स्केटिंग टर्फ बनाने की योजना कितनी सफल रही है यह सभी जानते हैं। टिहरी झील जिसमे वाटर स्पोर्ट्स और अन्य तमाम तरह के पर्यटन को विकसित किया जा सकता था आज भी सिर्फ वोटिंग तक ही सीमित है यहां का पर्यटन। दरअसल सरकार के पास पर्यटन विकास का कोई रोडमैप ही नहीं है। जिस पर कोई काम हो सके। पर्यटन विकास के लिए राज्य में आधारभूत ढांचा विकसित किया जाना कितना जरूरी है इस पर राज्य सरकारों ने कभी कुछ सोचना जरूरी नहीं समझा। न अच्छी सड़कें हैं न होटल न जन सुविधाएं। सिर्फ दाल—चावल व मच्छी—भात पर चल रहा है सूबे का पर्यटन और सरकार होमस्टे योजना चलाकर ही संतुष्ट है। भला हो पीएम मोदी का जिन्होंने ऑल वेदर रोड और ऋषिकेश—कर्णप्रयाग रेल लाइन को पूरा कराने की जिम्मेवारी ली और केदारपुरी तथा बद्रीनाथ पुरी के पुनर्निर्माण का काम कर श्रद्धालुओं की आस्था यात्रा को सुगम बनाने का प्रयास किया है। अगर केंद्र सरकार वह सब न करती तो आज 20 साल बाद भी इस राज्य का पर्यटन वहीं पड़ा होता है जहंा 100 साल पहले था। दरअसल राज्य में अगर पर्यटन का विकास नहीं हुआ है तो इसके पीछे इच्छाशक्ति की कमी सबसे बड़ा कारण रही है।