उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग हादसे को हुए 80 घंटे का समय बीत चुका है। सुरंग में फंसे 40 श्रमिकों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है ऐसी स्थिति में सिर्फ श्रमिकों के परिजनों की ही नहीं सभी की नजरे यहां चल रहे बचाव और राहत कार्य की प्रगति पर लगी हुई है। प्रार्थनाओं का दौर भी जारी है। उत्तरकाशी से कब ऐसी खबर आएगी कि मिशन सिलक्यारा पूरा हुआ और सभी श्रमिक सुरक्षित निकाल लिए गए। लेकिन जैसे—जैसे समय बढ़ता जा रहा है चिंता और आशंकाएं भी बढ़ती जा रही है। इस दुर्घटना का एक अहम पहलू यह है कि सुरंग में मजदूरो का पूरा समूह फंसा हुआ है और वह सभी एक साथ है तथा उनके पास जीवन रक्षक सभी सुविधाएं पहुंच पा रही है इस तरह की असाधारण स्थिति में अगर एक—दो व्यक्ति होते तो वह कब का हिम्मत हार चुके होते। लेकिन अगर कोई एक—दो लोग हिम्मत हारते भी है तो उनकी हिम्मत और हौसला बढ़ाने के लिए उनके साथी हैं लेकिन जब जान जोखिम में हो तो यह हौसला और हिम्मत कितने समय तक बनाए रखी जा सकती है? यह भी एक बड़ा सवाल है। ऐसे समय में हर एक पल बहुत महत्वपूर्ण होता है। बाहर जो लोग रेस्क्यू कार्य में जुटे हैं वह दिन—रात काम में जुटे हैं। लेकिन उनका थकना भी लाजमी है और जो अंदर फंसे हैं उनका भी मनोबल बढ़ते समय के साथ लगातार कम होना स्वाभाविक है। लगातार काम करने या जागते रहने की भी अपनी सीमाएं हैं। जिनके पूरा होने पर कई तरह की समस्याएं सामने आने लगती हैं। 12 नवंबर सुबह 4 बजे के आसपास हुए इस हादसे को 80 घंटे से भी अधिक समय हो चुका है लेकिन बचाव व राहत कार्य में प्रगति पर गौर करें तो अभी भी उसके आगे अनिश्चितता की लंबी लकीर खिंची हुई ही दिखाई दे रही है। राज्य सरकार और केंद्र सरकार भले ही अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ मिशन सिलक्यारा में जुटी हो लेकिन जब तक मिशन कामयाब और पूरा नहीं होता तब तक इन प्रयासों का कोई फायदा नहीं है। अब तक यह बचाव व राहत कार्य जिस मुकाम तक पहुंचा है उसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है। इंडिया इस ऑन मून पर अपनी पीठ थपथपाने वाले लोगों को इस पर गौर करने की जरूरत है कि इस तरह की आपात स्थिति में क्या इस तरह बचाव व राहत कार्य किए जाने चाहिए? 2 दिन पहले खुद सीएम धामी सुरंग तक गए। सुरंग से मलवा हटाकर इन मजदूरों को निकालना संभव नहीं है क्योंकि पहाड़ से सुरंग में लगातार मलवा आ रहा है इसे समझने में ही 36 घंटे का समय गुजर गया फिर ह्यूम पाइप से बाहर निकालने की कोशिशोंं पर काम शुरू हुआ। हरिद्वार और दून से ह्यूम पाइप और आगर मशीन ले जाई गयी और काम शुरू होने तक 24 घंटे का और समय बीत गया। काम शुरू हुआ तो ड्रीलिंग के दौरान भी सुरंग में बाहर की ओर मलवा आने लगा ऐसे में आगर मशीन की सुरक्षा का काम भी बढ़ गया सूबे की एकमात्र आगर मशीन ने काम बंद कर दिया और पूरे मिशन पर ही पानी फिर गया। यह प्रयास भले ही अपनी पूरी ताकत और जान झौंककर किये जा रहे हो लेकिन इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है। अब दिल्ली से आगर मशीन लाने की बात कही जा रही है और बीते 4 दिनों से चल रहा है यह मिशन एक बार फिर शुन्य के स्तर पर पहुंच चुका है। अब इस स्थिति में परिजनों का जनाक्रोश भी लाजमी है। इस ऑपरेशन का मिशन ए व मिशन बी दोनों फेल हो चुके हैं प्लान सी पर काम कब शुरू होगा या प्लान सी है क्या इसका अभी तक किसी को पता नहीं है ऐसे में अब इस सुरंग में फंसी इन 40 जिंदगियाें का क्या होगा इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है।