हिंदू—हिंदी और हिंदुस्तान यह महज तीन शब्द नहीं है। धर्म ज्ञान, विज्ञान भाषा और संस्कृति तथा सभ्यता का समग्र दर्शन इन तीन शब्दों में समाहित है। एक पत्थर तराशे जाने के बाद ही हीरा बनता है जिसे सिर्फ जौहरी की नजर ही परख सकती है ठीक वैसा ही इन तीन शब्दों का यथार्थ और मतलब है। हिंदी की जानी मानी लेखिका गीतांजलि श्री की कृति ट्टरेत समाधि, को विश्व की प्रतिष्ठित संस्था द्वारा सर्वाेच्च पुरस्कार बुकर से नवाजा जाना इसकी एक मिसाल है। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जन्मी गीतांजलि श्री के इस उपन्यास ट्टरेत समाधि, को मिली इस बड़ी उपलब्धि के लिए अमेरिकी अनुवादिका डेजी राकबेल को भी इसका श्रेय जाता है जिन्होंने ट्टरेत समाधि, में गीतांजलि श्री की भावनाओं को अत्यंत ही प्रभावी और मूल स्वरूप में पेश करने का काम अद्भुत अंदाज में किया है। यूं तो गीतांजलि श्री से पूर्व अनेक भारतीय और भारतवंशियों की कृतियों को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है जिनमें अरुंधति राय, किरण देसाई और अरविंद अडिगा जैसे कई नाम शामिल है लेकिन उनकी जिन कृतियों के लिए बुकर पुरस्कार दिया गया है अंग्रेजी में ही लिखी गई थी किसी हिंदी उपन्यास जिसे अंग्रेजी में अनुवाद के बाद बुकर पुरस्कार से नवाजा गया हो यह पहली बार ही हुआ है। निश्चित तौर पर विश्व साहित्य में हिंदी की प्रतिष्ठा और पहचान के लिए यह एक मील का पत्थर साबित होगा। गीतांजलि के इस उपन्यास ट्टरेत समाधि, (टूंब ऑफ सैंड) की यह पहली सफलता सिर्फ हिंदी के लिए ही नहीं देश की अन्य सभी भारतीय भाषाओं के लिए अत्यंत गौरव की बात है। इस पुरस्कार को पाने के बाद गीतांजलि श्री ने अपने संबोधन में कहा कि जब मैं लंदन आई थी तो मुझे कहा गया था कि यहां कुछ भी हो सकता है हर बात के लिए तैयार रहें। बारिश हो सकती है, बर्फ भी गिर सकती है, बादल छा सकते हैं और खिला सूरज भी हो सकता है तथा यहां बुकर भी मिल सकता है। निश्चित तौर पर तब मैंने बुकर के बारे में सोचा भी नहीं था लेकिन आज इस सम्मान को पाकर मैं स्वयं को भाग्यशाली महसूस कर रही हूं। सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं। यह सिर्फ नक्षत्रों का एक सुखद संयोग है। इस मुहूर्त की रोशनी मुझ पर पड़ी और मैं चमक उठी। उनका कथन सत्य ही है। देश में अनेक प्रतिभाएं ऐसी है जिन्हें कोई तराशने वाला और परखने वाला जौहरी नहीं मिला न ही उनकी रचनाओं को अंग्रेजी में अनुवाद करने वाला। गीतांजलि श्री निश्चित तौर पर भाग्यशाली हैं जिन्हें उपन्यास ट्टरेत समाधि, ने भारतीय हिंदी साहित्य के पलक को अंतरराष्ट्रीय तक विस्तार देने में सफलता हासिल की है उनकी यह उपलब्धि हम सभी भारतीयों और भारतीय भावनाओं के लिए गौरवान्वित करने वाली है।