धार्मिक अतिक्रमण पर बुलडोजर

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देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों धार्मिक अतिक्रमण के खिलाफ बड़ी कार्रवाई चल रही है। अब तक सरकारी और वन भूमि पर अवैध रूप से किए गए अतिक्रमण के तहत 227 मजारों सहित अनेक मठ मंदिरों को जमींदोज किया जा चुका है तथा 68 हेक्टेयर जमीन को कब्जा मुक्त कराया जा चुका है। यह हैरान करने वाली बात है उत्तराखंड में ऐसी हजारों मजार हैं जो अवैध रूप से जमीनों पर कब्जा करके बनाई गई हैं। सरकार ने जब इनका चिन्हीकरण शुरू किया तो पता चला कि 118 61 हेक्टेयर भूमि पर इनकी आड़ में अवैध रूप से कब्जा किया गया है। खास बात यह है कि यह कब्जे कुमाऊं मंडल में 80 फीसदी हैं। अभी बीते दिनों मुख्यमंत्री धामी के संज्ञान में जब यह मामला आया तो उन्होंने इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि इस धार्मिक अतिक्रमण के कारण प्रदेश में जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा हो रहा है जिसकी वजह से देवभूमि की संस्कृति प्रभावित हो रही है तथा अन्य कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं। राज्य में जितने व्यापक स्तर पर यह धार्मिक अतिक्रमण हुआ है उसे देखकर तो यही आगाज होता है कि जैसे वह एक सोची समझी साजिश है। इन मजारों को सुनियोजित तरीके से सुनसान क्षेत्रों में पहले दो चार लोग आकर बनाते हैं और फिर लोगों की धीरे—धीरे आवाजाही बढ़ती है तथा आसपास कच्चे पक्के निर्माण कर लोग रहना शुरू कर देते हैं कई स्थानों पर इन मजारों की आड़ में पूरी की पूरी बस्तियां बस जाती है और इसकी जानकारी भी अधिक लोगों को नहीं हो पाती हैं या फिर होती भी है तो उसे कोई गंभीरता से नहीं लेता है। एक अन्य खास बात यह है कि इनमें से 90 फीसदी मजारें वन विभाग व सरकारी जमीनों पर बनी है। कार्बेट पार्क जहां आम आदमी का प्रवेश भी वर्जित है वहां तक इन मजारों का बनना यह बताता है कि यह वन विभाग के अधिकारियों की सांठगांठ के बिना संभव नहीं है। अब जब इन मजारों का चिन्हीकरण हुआ तो इन अधिकारियों ने इसे छिपाने की कोशिश भी की जो उनकी संदिग्ध भूमिका को दर्शाता है। एक खास बात यह है कि इस मुद्दे पर भी राजनीति हावी होती दिख रही है। बात कोई भी हो यहां हर मुद्दा घूम फिर कर हिंदू—मुस्लिम और भाजपा कांग्रेस पर ही आकर टिक जाता है यह तो मजारों को तोड़े जाने का मुद्दा है आप केरला स्टोरी फिल्म को भी उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। खैर मजारों पर अब धामी का बुलडोजर चल रहा है तथा हरिद्वार में कुछ मठ मंदिरों को भी हटाया गया है। सच यह है कि यहां सही समय पर किसी समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता है और जब पानी सर तक आ जाता है तब एक्शन होता है। हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण इसकी एक मिसाल है, देखना है बुलडोजर कब चलता है? और इससे समस्या का कितना समाधान होता है तथा किसे कितना सियासी नफा नुकसान होता है।

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