राजनीति बनाम तुष्टीकरण

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भारतीय संविधान निर्माताओं ने भले ही संविधान को सर्वहितकारी बनाने में अपना संपूर्ण ज्ञान झोंक दिया हो और उनकी मूल भावना सभी जाति धर्म के लोगों को समान विकास के अवसर प्रदान करने की रही हो लेकिन आजादी के बाद से लेकर अब तक राजनीतिक दलों और नेताओं ने जिस तरह से तुष्टीकरण और सांप्रदायिकता की राजनीति की है वह संविधान की मूल भावना के अनुकूल नहीं रही है। कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जिस तरह की राजनीति आज तक की वैसी ही राजनीति भाजपा द्वारा सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास और सबका विश्वास जैसे नारों की आड़ में की जा रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो कर्नाटक के चुनाव में बजरंगबली और बजरंग दल चुनावी मुद्दा नहीं बने होते और कांग्रेसियों द्वारा जय श्रीराम के नारे नहीं लगाई जा रहे होते न हनुमान चालीसा का पाठ कराया जा रहा होता। बीते कल प्रदेश काग्रेस द्वारा जो हनुमान चालीसा का पाठ कराया गया उसे लेकर भाजपा के नेताओं की जैसी प्रतिक्रियाएं आ रही है और वह कह रहे हैं कि हमने उन्हें हनुमान चालीसा का पाठ करना सिखा दिया। उन्हें इस बात को समझने की जरूरत है राम और हनुमान पर उनका एकाधिकार भला कैसे हो सकता है हिंदुत्व के जिस एजेंडे पर भाजपा आगे बढ़ रही है या राम और हनुमान को सिर्फ अपना समझ रही है वह भी तुष्टीकरण की राजनीति ही है। यह अत्यंत ही चिंतनीय बात है सांप्रदायिकता की यह राजनीति अब उस स्तर पर आ गई है की जुमा (शुक्रवार) मुसलमानों का हो गया और सोमवार हिंदुओं का। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेसियों की जुमे वाले दिन हनुमान का पाठ कराने पर भाजपा को क्या आपत्ति हो सकती थी। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारों से लेकर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तक उनके धार्मिक ग्रंथों से लेकर स्मृति चिन्हों और दिनों तक सब कुछ इन नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा सांप्रदायिकता और तुष्टीकरण की राजनीति का हिस्सा बनाया जा चुका है। यही नहीं जाति और धर्म के आधार पर जिस तरह का विभाजन इस देश के नेताओं ने किया है उससे भारतीय समाज की एकता में अनेकता की छवि की धज्जियां उड़ाने का काम लगातार किया जा रहा है। रामायण के राम के बारे में ही तुलसी बाबा ने उन्हें सबके राम बताया हो लेकिन भाजपाइयों के लिए राम सिर्फ भाजपा के राम हो गए हैं? अगर यह तुष्टीकरण की राजनीति नहीं है तो और क्या है? सभी दलों और नेताओं को न राम से कुछ लेना है और न रहीम से यह भी एक अकाट्य सत्य है उन्हें तो सिर्फ वोट चाहिए जिसके लिए वह कुछ भी कर रहे हैं और करने को तैयार हैं।

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