राजद्रोह की समीक्षा जरूरी

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देश की सर्वाेच्च अदालत द्वारा देशद्रोह कानून पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। भले ही अभी इस डेढ़ सौ साल पुराने कानून पर सिर्फ तब तक के लिए रोक लगाई गई हो जब तक केंद्र सरकार इस कानून (संविधान की धारा 124) की समीक्षा करके अपना रुख स्पष्ट नहीं करती है लेकिन इससे अदालत की मंशा जरूर साफ हो गई है। अदालत का मानना है कि नागरिकों के अधिकारों और सरकारों के हितों के बीच संतुलन जरूरी है। दरअसल इस कानून की समीक्षा की बात इसके दुरुपयोग से शुरू होती है। किसी भी कानून का उद्देश्य संवैधानिक व्यवस्था की हिफाजत और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा ही होता है। केंद्र सरकार द्वारा इस मामले की सुनवाई के दौरान इस बात को स्वीकार किया जा चुका है कि इस कानून का दुरुपयोग होता है या हुआ है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अदालत में पहले अपना पक्ष रखते हुए यह भी कहा गया था कि किसी कानून को सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता है कि उसका दुरुपयोग हो रहा है। यह ठीक भी है अगर किसी कानून की राष्ट्रीय व समाज हित के लिए जरूरत है तो उसे खत्म करने की बजाय उसके दुरुपयोग को रोकने के प्रयास होने चाहिए। खत्म तो उन्हीं कानून को किया जाना चाहिए जिनकी कोई उपयोगिता नहीं है केंद्र सरकार ने अदालत को यह भी बताया कि उसने बीते 8 साल में ऐसे डेढ़ हजार कानून खत्म किए हैं जो व्यवस्था पर बेवजह का बोझ बने हुए थे खैर अब केंद्र सरकार इस कानून की पुर्न समीक्षा के लिए तैयार है। सरकार जब इसकी पुर्न समीक्षा करेगी तब यह साफ हो सकेगा कि राजद्रोह कानून का भविष्य क्या होगा इसमें कोई संशोधन किया जाएगा जो इसका दुरुपयोग रोक सके या फिर इसे खत्म किया जाएगा। लेकिन सरकार के फैसले से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाकर यह साफ कर दिया गया है कि अब यह नहीं चलेगा कि सरकार किसी को भी उठा कर जेल में ठूस दे और उस पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करा दें जिसमें पीड़ित को जमानत का भी अधिकार न हो। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश दे दिए गए हैं कि वह आईपीसी की धारा 124 के तहत कोई मुकदमा दर्ज न कराएं वही जो लोग देश द्रोह के आरोपों में जेलों में बंद हैं वह अपनी बेल के लिए अदालत जा सकते हैं। कानून मंत्री रिजिजू को भले ही अदालत का यह फैसला नागवार लगा हो और उन्होंने न्यायपालिका को उसकी अधिकार सीमाओं में रहकर काम करने की नसीहत दी हो लेकिन एक बात स्पष्ट है कि न्यायपालिका का काम कानून बनाने का नहीं है कानून बनाने का अधिकार तो कार्यपालिका के पास ही है लेकिन न्यायपालिका अगर किसी कानून का दुरुपयोग रोकने को कार्यपालिका को बाध्य करती है तो यह किसी के अधिकारों का उल्लंघन भी नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अब जो व्यवस्था दी है उसमें केंद्र सरकार इस मुद्दे पर निर्णय के बहाने उसे लंबे समय तक टाल भी नहीं सकती है, जो एक अच्छी बात है। रही बात देशद्रोहियों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई की जो यह सभी चाहते हैं कि जो राष्ट्र द्रोही हो उसे कतई भी बख्शा नहीं जाना चाहिए।

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