उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और अफसर भले ही चार धाम यात्रा की तैयारियों को लेकर बड़े—बड़े दावे और बड़ी—बड़ी बातें कर रहे हो लेकिन बीते कल एनएमडीसी के दिशा निर्देश पर की गई मॉक ड्रिल के दौरान इसकी जमीनी हकीकत सामने आ गई। खास बात यह है कि किसी भी मॉक ड्रिल का उस समय कोई अर्थ नहीं रह जाता जब इसकी सूचना 4 दिन पहले ही सभी विभागों को दे दी गई। लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि चार धाम की व्यवस्थाओं से जुड़े सभी विभागों को इसकी पूर्व जानकारी थी इसके बावजूद भी आपदा प्रबंधन के लिए टीमों का समय पर नहीं पहुंचना तथा अस्पतालों में घायलों के इलाज की उचित व्यवस्था न होना तथा घायलों का ट्रैफिक जाम में फंसना, अस्पतालों द्वारा स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना तक न देना और घायलों को भर्ती करने के लिए कंप्यूटर की बजाए रजिस्टर में ही रजिस्ट्रेशन करना आदि अनेक अव्यवस्थाओं के मिलने पर केंद्रीय अधिकारियों ने कड़ी नाराजगी जताई है। इस मॉक ड्रिल का आयोजन रियल्टी चेक के लिए किया गया था लेकिन यह इसमें फेल साबित हुआ है अब आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा कह रहे हैं कि दोबारा से मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाएगा और इसकी तारीख व समय को गोपनीय रखा जाएगा। सूबे की अफसरशाही कितनी गंभीरता से काम करती है? इसका खुलासा इस बात से होता है कि जब उनसे आपदा से निपटने का प्लान तैयार करने को कहा जाता है तो वह गूगल से भुवनेश्वर का आपदा प्लान कॉपी कर पेश कर देते हैं। बीते कल हुई मॉक ड्रिल के समय जब तक सीएम की मौजूदगी रही तब तक तो अफसर भी दिखाई दिए लेकिन सीएम के जाते ही यह अफसर भी खिसक लिए। इस मॉक ड्रिल का आयोजन गढ़वाल मंडल के सात जिलों में 16 स्थानों पर किया गया था लेकिन चार धाम यात्रा की तैयारियों में जुटे तमाम विभागों के बीच किसी भी तरह का समन्वय देखने को नहीं मिला जबकि इन सभी विभागों को समय—समय पर हिदायतें दी जाती रही है कि वह आपसी समन्वय बनाकर रखें दून के एक क्षेत्र में बाढ़ की सूचना और लोगों के फंसे होने की खबर ऋषिकेश बस स्टैंड पर भगदड़ की सूचना यात्री वाहन के खाई में गिरने की सूचना व भूकंप आदि की सूचनाएं देकर किए गए इस माक ड्रिल से यह साबित हो गया है कि आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर यातायात व पुलिस व्यवस्था आदि सबकुछ राम भरोसे ही है। राज्य में सड़कों की हालत इतनी अधिक खराब है कि यात्रा मार्गों पर सड़कों में ऐसे डेंजर जोन बन चुके हैं कि जहां भूस्खलन और भू धसांव के गंभीर खतरे हैं जिनसे यात्रियों को दो—चार होना पड़ेगा। सरकार और सभी विभागों के पास उत्तरदायित्व व जवाबदेही से बचने का खराब मौसम एक मुफीद बहाना है। बीते साल यात्रा प्रबंधों की खामियों का हर्जाना यात्रियों को ही नहीं उन बेजुबान घोड़े खच्चर तक को भोगना पड़ा जिनकी व्यवस्थापक खामियों के कारण बड़ी संख्या में मौतें हुई थी। देखना यह है कि पूर्व वर्षों से अधिक बेहतर इंतजाम करने का दावा करने वाला शासन प्रशासन इन चारधाम यात्रियों को कितनी सुरक्षित व सुगम यात्रा करा पाता है?