सतर्कता पूर्ण आर्थिक विकास

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एक और जहां विश्व के तमाम विकसित देश कोरोना महामारी के बाद घोर आर्थिक मंदी और कमजोर होती अर्थव्यवस्था से परेशान हैं वही भारत को एक नयी उभरती हुई आर्थिक ताकत के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की इस मजबूती के कारण आज तमाम विश्व राष्ट्र भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। 2022 में वैश्विक विकास दर जहां 3.4 प्रतिशत रही वहीं भारत की विकास दर 6.8 फीसदी रही है और भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवें नंबर की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर सामने आई है। वर्ष 2023—24 में विश्व की आर्थिक विकास दर के जहां 3.1 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है वहीं भारत की आर्थिक विकास दर 6.1 फीसदी रहने की संभावना जताई जा रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 15 फीसदी है जो भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था का प्रमाण है। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलिना जार्जीवा ने पाकिस्तान जैसे देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और कर्ज का ब्याज तक भुगतान न करने के कारण उसको किसी भी तरह की आर्थिक मदद करने से इंकार कर दिया है वहीं उनका कहना है कि भारत ने अपने बजट में जिस तरह से पूंजीगत खर्चों को बढ़ाया है और डिजिटलीकरण के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था को कठिन दौर में मजबूत बनाये रखा है। अभी बीते दिनों भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में आर्थिक बदहाली व आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि के कारण अराजकता के हालात बन गए थे। आज वैसे ही हालात पड़ोसी देश पाकिस्तान में पैदा होते दिख रहे हैं। पाकिस्तान सरकार द्वारा पहले आम जनता को महंगाई की आग में झोंक कर इन हालातों से निपटने के प्रयास किए गए और जब इससे भी बात नहीं बनी तो अब सरकार अपनी लग्जरी गाड़ियों और सरकारी आवासों को बेचने का ऐलान कर रही है। पाकिस्तान की आम आवाम को दो वक्त का भरपेट भोजन मिलना मुश्किल हो रहा है क्योंकि यहां आटा, दाल, चावल के साथ—साथ पेट्रोल—डीजल के दाम भी भारत की तुलना में कई गुना अधिक हो चुके हैं पाकिस्तान अब अपनी सेना को पर्याप्त रसद भी मुहैया नहीं करा पा रहा है। भले ही यह पहली बार नहीं हो रहा है लेकिन किसी भी देश के लिए ऐसी स्थिति ठीक नहीं हो सकती है। क्रिस्टलिना के मुताबिक भारत अपनी कुशल राजकोषीय और वित्तीय प्रबंधन के कारण स्थिति को संभाले हुए हैं जिससे विकास की एक रफ्तार बनी हुई है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने विकास की इस रफ्तार को बनाए रखने के लिए सतर्कता बरतने की बात कही है और पूंजी निवेश सरकारी खर्चों व आगामी लोकसभा चुनाव के खर्चे तथा मानसूनी अनिश्चितता का हवाला देते हुए मुद्रा स्प्रीति दर के बढ़ने और ब्याज दरों में वृद्धि होने की बात कही है। इन सभी मुद्दों पर रिजर्व बैंक द्वारा भी कई बार चिंता जताई जा चुकी है। भारत में गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाली आबादी के बारे में सोचा जाना जरूरी है। जो वर्तमान की महंगाई की मार को झेल नहीं पा रही है। वही रोजगार की कमी दूसरा एक अहम मुद्दा है जो देश की सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करता है। यह भले ही भारत के लिए अच्छी बात है कि देश एक और हरित क्रांति के सपने बुन रहा है और विश्व राष्ट्र उसकी ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं लेकिन विकास की राह पर सतर्कता भी जरूरी है।

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