भले ही अभी लोकसभा चुनाव में एक साल का समय शेष हो लेकिन 2024 में होने वाला है यह आम चुनाव कितना खास रहने वाला है? इसका अंदाजा न सिर्फ तमाम राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को हो चुका है अपितु आम आदमी भी यह जान चुका है इस चुनाव ने देश और समाज की भावी स्थितियों और परिस्थितियों की दिशा और दशा तय करनी है। विपक्षी दलों को इस बात का बखूबी एहसास हो चुका है कि उनमें से कोई भी अकेला अब भाजपा के उस चक्रव्यूह को नहीं तोड़ सकता है जो उसे सत्ताच्यूत कर सके। इसके साथ ही इन नेताओं को यह भी पता है कि विपक्ष की एकता का रास्ता भी उतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है। एक अकेले नीतीश कुमार ही नहीं है तमाम अन्य दल और उनके नेता इस विपक्षी एकता में सिर्फ स्वयं को ही सर्वाेच्च प्राथमिकता दिए जाने की महत्वकांक्षी रखते हैं। सपा हो या बसपा अथवा जनता दल यू किसी को भी कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं है भले ही वह इस बात को भी अच्छी तरह से जानते हो कि बिना कांग्रेस के कोई तीसरा मोर्चा खड़ा नहीं किया जा सकता है। इस बात को भाजपा के नेता भी जानते हैं कि उनका मुकाबला न तो कोई एक दल कर सकता है और न सभी दल एक हो सकते हैं। भाजपा ने अपने 9 साल के शासनकाल में क्षेत्रीय दलों व छोटे दलों को कहीं का नहीं छोड़ा है। शिवसेना इसका एक ताजा उदाहरण है जिसका नाम और निशान तक छिन चुका है और वह अब स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं तथा अन्य राजनीतिक दलों को भी सबक लेने की बात कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि भाजपा ने जो उसके साथ किया वह कल किसी के भी साथ हो सकता है। विपक्षी एकता के प्रयास में जुटे नीतीश कुमार को भाजपा के नेता अब यह समझा रहे हैं कि उनसे बिहार और अपनी पार्टी तो संभल नहीं रही है वह देश को क्या संभालेंगे? रविशंकर का उनके बारे में कहना है कि नीतीश बाबू एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल क्यों बनना चाहते हैं? उनकी समझ से परे है। इन तमाम बातों के मतलब विपक्षी दलों के नेताओं को समझने की जरूरत है। भाजपा ने 2014 में जब चुनाव जीतकर केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सत्ता संभाली तो उन्होंने एक बच्चे से पूछा था कि बड़े होकर क्या बनना चाहते हो जब उसने कहा कि प्रधानमंत्री तो मोदी ने कहा था कि बेटा 15 साल तो भूल जाओ इसके बाद सोचना। पीएम मोदी के इस बयान में उनकी महत्वाकांक्षा ही नहीं बल्कि भाजपा का वह नीतिगत निर्णय छुपा है जिसके एजेंडे पर भाजपा ने बीते 9 सालों में काम किया है। बात चाहे कांग्रेस मुक्त देश की हो या फिर राष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की अथवा सिमटते सिकुड़ते क्षेत्रीय और छोटे राजनीतिक दलों की। भाजपा ने इन 9 सालों में एक तय एजेंडे पर लगातार काम किया है। जिसके चलते आज यह तमाम दल उस स्थिति में पहुंच चुके हैं कि वह अपनी जीत के लिए कम वर्चस्व को बचाने की जंग अधिक लड़ते दिख रहे हैं। विपक्ष जितना कमजोर हुआ है भाजपा उतनी ही अधिक मजबूत बनती चली गई है। 2024 का चुनाव भाजपा के लिए कोई चुनौती रह ही नहीं गया है। प्रभावी से प्रभावी मुद्दे भी विपक्ष के लिए बेकार साबित हो रहे हैं तो इसके पीछे कारण यही है इन मुद्दों को दमदार तरीके से उठाने की ताकत भी विपक्ष के पास शेष नहीं बची है। 2024 का चुनाव विपक्ष के लिए एक बड़ी अग्निपरीक्षा से कम नहीं रहने वाला है।