भर्तियों पर भूल सुधार की कोशिश

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सरकार द्वारा बनाए गए यूकेएसएसएससी ने युवाओं का जीवन और कैरियर किस तरह बर्बाद किया और उसने अपने काम और कर्तव्य को किस तरह निभाया इसका कच्चा चिट्ठा अब सबके सामने आ चुका है एसआईटी जांच में आयोग और नकल माफिया पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं वहीं सत्ता में बैठे लोग जो मूकदर्शक बने रहे या भ्रष्टाचार को संरक्षण देते रहे अब सब बेनकाब हो चुके हैं। अब इस भूल सुधार में पूरा शासन—प्रशासन जुटा हुआ है। एसआईटी की जांच और आरोपियों की धरपकड़ के बाद आयोग का अस्तित्व बचाने की जो कवायद अब वर्तमान समय में की जा रही है वह किसी भूल सुधार में कितनी सार्थक सिद्ध होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन कुछ गलतियां ऐसी होती है जिनके लिए माफी भी नाकाफी होती हैं। उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों की जो लूटपाट अब तक हुई है वह एक ऐसी ही गलती है। विधानसभा व सचिवालय की बैकडोर भर्तियों की बात करें या फिर यूकेएसएसएससी भर्ती घोटालों की, सभी की कहानी एक जैसी है। बीते कल अधीनस्थ चयन सेवा आयोग द्वारा स्नातक स्तरीय भर्ती, वन दरोगा भर्ती एवं सचिवालय रक्षक भर्ती जिनकी परीक्षा परिणाम घोषित किया जा चुका है था उन्हें रद्द कर दिया गया है। जांच के आधार पर इनमें व्यापक स्तर पर धांधली किये जाने की बात सामने आयी थी। अभी 7 और ऐसी भर्तियां हैं, जिन पर आयोग को फैसला लेना है तथा इनके बारे में आयोग ने सरकार से विधिक राय मांगी है। सच को अगर स्वीकार किया जाए तो आयोग के गठन से लेकर इस घोटाले के खुलासे से पूर्व जितनी भी भर्तियां हुई उन सभी भर्तियों में व्यापक धांधली हुई है। नकल माफिया जिनके घर में खाने के लिए दाने तक नहीं थे लाखों करोड़ों की संपत्तियों के मालिक अगर बन गए तो यूंही नहीं बन गए। अब आयोग और सरकार चाहे जितने सख्त फैसले और इन आरोपियों को कानूनी तौर पर सलाखों के पीछे भिजवा दें और उनकी थोड़ी बहुत संपत्ति अभी जब्द करा दे लेकिन उन्हें ज्यादा कुछ प्रभाव पड़ने वाला नहीं है क्योंकि वह लाखों रुपए कानूनी लड़ाई लड़ने में खर्च करने की क्षमता रखते हैं। सरकार और आयोग अपने तमाम प्रयासों के बाद भी दोबारा से राज्य के युवाओं का भरोसा नहीं जीत सकते है। क्योंिक उनके साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आयोग के नए अध्यक्ष जीएस मर्ताेलिया ने कल कड़े फैसले लेते हुए इस बात का ऐलान कर दिया है कि जिन लोगों के नाम इस नकल प्रकरण में सामने आए हैं वह इन भर्तियों में ही नहीं किसी अन्य भर्ती परीक्षा में भी शामिल नहीं हो सकते हैं। ऐसे लोगों की संख्या एक—दो नहीं हजारों में है जो अब किसी भी सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य साबित कर दिए गए हैं। विधानसभा बैक डोर भर्तियों के बर्खास्त कर्मचारियों के बाद अब चयन के बाद परीक्षा रद्द होने को लेकर वह युवा भी आंदोलन की राह पकड़ेंगे जो सरकारी नौकरी पा चुके थे लेकिन अब नौकरी उनके हाथ से जाती दिख रही है। सच यह है कि इस भूल का सुधार संभव नहीं है।

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