वर्तमान में हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश की एक संसदीय सीट और 2 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव एवं दिल्ली के एमसीडी के चुनाव नतीजे आ चुके हैं। गुजरात चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर रिकॉर्ड मत प्रतिशत के साथ डेढ़ सौ से अधिक सीटें जीतकर यह साबित कर दिया है कि उसे गुजरात में कोई नहीं हरा सकता। 27 साल की ंएन्टी इनकैम्बसी और मुफ्त की राजनीति भी उस काम को चुनौती नहीं दे सकती है जो उसने गुजरात में काम किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गृह प्रदेश में उन्हें हराने का मतलब होता है देश की राजनीति से बाहर कर देना। जो अभी तो कम से कम संभव नहीं है। गुजरात का चुनाव मोदी और शाह की नाक का सवाल था इसलिए उन्होंने यहां एक बड़ी लाइन खींचने की कोशिश की और उसमें वह कामयाब भी रहे। लेकिन 20 फीसदी मतदाताओं के साथ यहां आम आदमी पार्टी का खाता खोलना भले ही वह दहाई का अंक भी न छू सकी हो उसे राष्ट्रीय राजनीतिक दल बनाने की ओर दो कदम आगे ले जाता है। वहीं दिल्ली के एमसीडी चुनाव में आप द्वारा 15 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा देना उसकी बड़ी कामयाबी है। इन चुनावों के नतीजे यह बताते हैं कि बाकी किसी को कोई फायदा हुआ हो या न हुआ हो लेकिन हिमाचल में भी उत्तराखंड की तरह अपना खाता तक न खोल पाने वाली आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल सबसे अधिक फायदे में रहे हैं। गुजरात तो बीते 27 साल से भाजपा के पास था ही 5 साल की समय सीमा अब और बढ़ गई हो लेकिन एमसीडी से उसकी सत्ता का जाना और हिमाचल में उसके डबल इंजन के फार्मूले का फेल हो जाना उसकी बढ़ती रफ्तार पर ब्रेक लगने का संकेत जरूर कहा जा सकता है। हिमाचल में अब तक एक बार भाजपा और फिर एक बार कांग्रेस की सरकार बनाने का जो रिवाज चला आ रहा है इस रिवाज को बदलने के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरी भाजपा ने हालांकि चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत भले ही झोंक दी हो लेकिन वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सकी कांग्रेस भले ही हिमाचल में मामूली बढ़त के साथ सत्ता हासिल करने में सफल रही हो लेकिन जहां उसे हर जगह भारी और बड़ा नुकसान हो रहा है हिमाचल की जीत उसके लिए एक उम्मीद की किरण जरूर कही जा सकती है लेकिन इस पर उसे बहुत खुश यां संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी उपचुनाव के नतीजों में भी समाजवादी पार्टी की जीत पर सपा को खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह जीत मुलायम सिंह के निधन पर मिली सहानुभूति की जीत है। वर्तमान के उपचुनाव नतीजों को देखकर अगर सपा प्रमुख अखिलेश यादव आगामी लोकसभा या विधानसभा चुनाव के लिए कोई बड़ा सपना देख रहे हैं तो यह उनका मुगालता ही होगा वर्तमान चुनाव के नतीजे देश के भावी भविष्य की राजनीति और राजनीतिक दलों को कुछ न कुछ संदेश तो देते ही हैं इन संकेतों को कौन कैसे समझता है यह अलग बात है।