समय के साथ स्थितियां परिस्थितियां बदलती है। आदमी की जरूरतों के अनुसार संसाधनों में भी बदलाव होता है समाज के क्रमिक विकास का इतिहास बताता है कि जो देश व समाज समय के बदलाव के साथ नहीं चलता वह विकास की दौड़ में पिछड़ जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर आज के युग में अगर कोई किसान ढेकली अथवा राहट से अपने खेत की सिंचाई करने लगे तो उसके बारे में आप क्या सोचेंगे? उत्तराखंड की राजस्व पुलिस व्यवस्था भी एक ऐसा ही उदाहरण है अंग्रेजी हुकूमत के समय से जारी इस राजस्व पुलिस व्यवस्था को आज तक क्यों ढोया जाता रहा है? यह एक यक्ष प्रश्न है। राज्य के 15000 से अधिक गांव अभी राजस्व पुलिस व्यवस्था पर निर्भर हैं। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यहां राजस्व पुलिस अभी सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई है। जिसके पास न तू आधुनिक हथियार है और न अन्य संसाधन। सामाजिक झगड़े झंझटो से लेकर भूमि और वित्तीय विवाद तक ही नहीं अन्य तमाम तरह के आपराधिक मामलों को राजस्व पुलिस ही देखती है। खास बात यह है कि सबसे अधिक निष्क्रिय राजस्व पुलिस की यह व्यवस्था अपने मनमाने तरीके से काम करती है। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा डेढ़ सौ साल पुरानी इस व्यवस्था को समाप्त करने का आदेश सरकार को दिया गया था तथा इसके लिए 6 माह का समय दिया गया था लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इसे समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया? अब अंकिता मर्डर केस में राजस्व पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर जो सवाल उठ खड़े हुए हैं उसके बाद उत्तराखंड सरकार की नींद टूटी है। वह भी तब जब हाई कोर्ट ने सरकार से एक बार फिर यह पूछा है कि 2018 में दिए गए उसके आदेशों पर सरकार ने अब तक क्या कुछ किया है। सरकार ने अब डीजीपी और राजस्व परिषद से राजस्व पुलिस का 3 साल का लेखा—जोखा मांगा है वह भी 3 दिन के अंदर। अंकिता हत्याकांड के बाद विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी ने भी राजस्व पुलिस की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री धामी को खत लिखकर इसे समाप्त करने की मांग की गई थी। वही खुद डीजीपी अशोक कुमार का भी कहना था कि राजस्व पुलिस के पास वर्तमान की जरूरतों के अनुरूप संसाधन नहीं है और न पुलिस जैसी क्षमता और दक्षता। इसलिए उसकी जगह रेगुलर पुलिस की व्यवस्था की जानी चाहिए। दरअसल राज्य के उन तमाम हिस्सों में जो राजस्व पुलिस के अधीन है वहां अफीम और गाजा पैदा होता है और यह कारोबार राजस्व पुलिस के संरक्षण में चलता रहा है अगर रेगुलर पुलिसिंग की व्यवस्था होगी तो इस धंधे में लगे लोगों को बड़ा झटका लगेगा यही कारण है कि राजनीतिक दल व सरकारें भी इस व्यवस्था को बदलने में उदासीनता दिखाती रही हैं। अब देखना है कि यह व्यवस्था कब तक समाप्त हो पाती है लेकिन अब इसकी समाप्ति तय जरूर हो चुकी है।