उत्तराखंड की सियासत में इन दिनों जो भूचाल आया हुआ है वह भाजपा की और संघ के नेताओं के अपनी करनी का ही नतीजा है। यह स्वाभाविक है कि भर्ती घोटालों और अब अंकिता मर्डर केस को लेकर उत्तराखंड के आम जनमानस में भारी रोष है, जिसका प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव भाजपा और उत्तराखंड की सरकार दोनों पर पड़ रहा है। इन घटनाओं ने पार्टी को असहज कर दिया है। बात चाहे आयोग के पेपर लीक मामलों की हो जिसने आयोग के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया चाहे विधानसभा में हुई बैक डोर भर्तियों की, जिसे भाजपा नेता और सरकार में मंत्री सीना ठोक कर अपने गलत को सही ठहराने का काम करते रहे। इस प्रकरण ने भाजपा की छवि को पूरी तरह से तार—तार कर दिया है रही सही कमी अब अंकिता मर्डर केस ने पूरी कर दी जिसे लेकर अब इस मामले की कवरेज करने वाले पत्रकारों तक को धमकियां दी जा रही है। उक्त मामलों से भाजपा और संघ के नेताओं का संबंध होना और यह सच आम जनता के सामने आ जाना भाजपा और सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत बन चुका है। इन सभी घटनाक्रमों में सबसे खास बात यह है कि सरकार ने इनकी जांच और दोषियों के खिलाफ जो सख्त कार्रवाई करने का साहस दिखाया है वह भी सरकार और भाजपा के खिलाफ ही जा रहा है क्योंकि जैसे—जैसे रहस्यों से पर्दा उठ रहा है वैसे—वैसे तथ्य और स्पष्ट होते जा रहे हैं। सरकार की कार्यवाही के जरिए सूबे के नेता संदेश तो यह देना चाहते थे कि सरकार भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था को लेकर जीरो टोलरेंस की नीति पर काम कर रही है तथा दोषी चाहे कोई भी हो उसे बख्शा नहीं जाएगा लेकिन दोषियों की कतार में अब सभी अपने ही खड़े नजर आ रहे हैं तथा यह कतार लंबी और लंबी होती जा रही है। जो भाजपा सरकार और भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत का सबब बन चुका है। भाजपा के रणनीतिकारों को अब यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर डैमेज कंट्रोल हो तो कैसे हो। 2022 के चुनाव में जनता ने एक बार फिर एक मजबूत बहुमत के साथ सत्ता में भाजपा को बैठाया था। तब तक जनता भी खुश थी और भाजपा नेताओं की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था लेकिन चंद महीने ही बीते हैं कि अब दोनों ही परेशान नजर आ रहे हैं। स्थिति इतनी खराब होती जा रही है कि अब 2024 में क्या होगा इसकी चिंता अभी से सतानी शुरू हो गई है। बैक डोर भर्तियों में संघ नेताओं के बच्चों को भी नौकरियां दिए जाने से लेकर अब अंकिता मर्डर केस में अभी अभद्र टिप्पणियों को करने का जो मामला सामने आया है उसका भाजपा व सरकार की छवि पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इन मामलों को लेकर सरकार भले ही कुछ भी कर रही हो लेकिन इसके साथ—साथ सरकार के खिलाफ धरने प्रदर्शन व आंदोलन भी बदस्तूर जारी हैं। अगर यह सिलसिला नहीं थमता है तो यह भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला ही साबित होगा