उत्तराखंड राज्य गठन के पहले दो दशकों का राज काज कैसा रहा है? अलग राज्य की मांग को लेकर सूबे की जिस जनता ने सड़कों पर संघर्ष किया, लाठियां खाई, गोलियां खाई और जेल गए उनकी अपेक्षाओं का राज्य बनाने का दावा करने वाले नेताओं व नौकरशाहों ने उनके साथ कैसा खेला किया अब इसका सच जनता के सामने आना शुरू हो गया है। बात सिर्फ राज्य सरकार की नौकरियों में हुई व्यापक धांधली तक ही सीमित नहीं है जिन्हें लेकर इन दिनों सियासी हलकों में तूफान आया हुआ है। राज्य के नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ ने राज्य को किस तरह दोनों हाथों से लूटा है इसके लिए अब किसी एक घपले—घोटाले को उदाहरण के तौर पर उल्लेखित नहीं किया जा सकता है। यूकेएसएसएससी भर्ती घोटाले की जांच शुरू हुई तो तमाम भर्तियों में हुई व्यापक स्तर पर धांधली जगजाहिर हो गई। यह सच सबके सामने आ चुका है कि राज्य गठन के बाद किसी भी विभाग में जो भी नियुक्तियां हुई उनमें से कोई एक भी निष्पक्ष नहीं रही है। सवाल यह है कि क्या सरकार अब राज्य में हुई सभी भर्तियों की जांच कराएगी और उसके आरोपियों को वैसे ही जेल भिजवायेगी जैसे यूकेएसएसएससी भर्ती मामले में हो रहा है। बीते कल मुख्यमंत्री धामी ने विधानसभा में हुई भर्तियों की जांच कराने की जो मंशा जाहिर की है वह अत्यंत ही महत्वपूर्ण बात है। सवाल इस बात का नहीं है कि भर्तियां किसके कार्यकाल में हुई। राज्य में सरकार चाहे भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, भ्रष्टाचार की गंगा हर किसी के समय में अविरल रूप से बहती रही है। भाजपा सरकार अब अगर सभी मामलों की जांच का साहस दिखा रही है तो इसके लिए वह धन्यवाद की पात्र है। वरना अब तक तो भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर नूरा कुश्ती ही करते रहे हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जब गोविंद सिंह कुंजवाल विधानसभा अध्यक्ष थे उन्होंने अपने बहू—बेटे और सगे संबंधियों सहित 150 लोगों को नौकरी दे दी। नेताओं की बेशर्मी की हद देखिए कि वह अब भी अपने इस कृत्य को अपना संवैधानिक अधिकार बताकर सही ठहरा रहे हैं और कह रहे हैं कि इन भर्तियों में उन्होंने किसी तरह का लेन—देन नहीं किया। मेरे बहू और बेटे पढ़े—लिखे और बेरोजगार थे मैंने अगर उन्हें नौकरी दे दी तो कौन सा पाप कर दिया। इन नेताओं को भला कौन समझा सकता है कि उनका संवैधानिक अधिकार अपने बहू—बेटों को नौकरी देने का नहीं है। राज्य में लाखों ऐसे लोग हैं जो उनके बहू—बेटों से ज्यादा जरूरतमंद है। भाजपा की सरकार में यह खेल खूब जारी रहा है। काबीना मंत्री रेखा आर्य सहित तमाम ऐसे भाजपा नेता हैं जिनके सगे संबंधियों को बैक डोर से नौकरियां दी गई है। बात अगर आर्थिक घोटालों की की जाए तो राज्य में अब तक बीते दो दशकों में 100 से भी अधिक घोटाले—घपले हुए हैं। स्टूटर्जिया से लेकर कुंभ घोटाले और ढेंचा बीज घोटाले से लेकर एनएच जमीन मुआवजा घोटाले तक दर्जनों ऐसे बड़े घोटाले हैं जिनमें सूबे के तमाम बड़े नेताओं की संलिप्तता सामने आ चुकी है। अभी कुंभ के दौरान कोरोना टेस्टिंग में करोड़ों के घोटाले की बात सामने आई थी। राज्य के कई अधिकारी अब इन घोटालों की जांच में जुटे हुए हैं। यह पहला मर्तबा है जब भ्रष्टाचार और घोटाले पर चोट की बात हो रही है। वरना पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह जैसे नेता तो यहां तक इससे नजरें फेर चुके थे कि वह यह कहने में लगे थे कि जब भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ यह जांच किसी मुकाम तक पहुंच पाती है या नहीं। या फिर कहां तक पहुंच पाती है हां एक बात जरूर जगजाहिर हो चुकी है कि भ्रष्टाचार के इस हमाम में सब नंगे हैं।