सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
क्रासर—दून के अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई
देहरादून/नई दिल्ली। कोरोना काल में इलाज के नाम पर आम आदमी से मनमानी वसूली करने वाले प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब मांगा गया है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायधीश वी वी नागरयना ने देहरादून के अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा गया है कि क्या यह सच है कि सरकार द्वारा इलाज की दरों पर जारी गाइडलाइनों के बाद भी निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों से अधिक पैसे वसूल किए गए? और अगर किए गए तो यह पैसा इन अस्पतालों से कैसे वापस लिया जा सकता है तथा उन लोगों तक कैसे पहुंचाया जा सकता है जिनसे लिया गया है। न्यायालय ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह में अपना पक्ष रखने को कहा गया है।
जनहित याचिका दायर करने वाले अभिनव थापर ने अपनी याचिका में कहा है कि कोरोना काल में देश के 1करोड़ से अधिक लोगों द्वारा अपनों की जान बचाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ा था। मार्च 2020 में इन अस्पतालों द्वारा की जा रही लूटपाट की शिकायत मिलने पर केंद्र सरकार ने गाइडलाइन जारी करते हुए आक्सीजन बैड के लिए 8 से 10 तथा आईसीयू बेड को 13 से 15 व वेंटिलेटर के लिए 18 हजार रूपये प्रतिदिन की दर तय की गई थी जिसमें दवाओं, जांचों, पी.पी किट आदि सभी खर्चे शामिल थे लेकिन इसके बाद भी निजी अस्पतालों ने मरीजों से मनमाने चार्ज लिए। लोगों को 20 से लेकर 50 लाख तक के बिल थमा दिए गए। अस्पतालों का बिल चुकाने के लिए लोगों को अपनी जमीन जायदाद और गहने तक बेचने पड़े। अपील कर्ता का कहना है कि देश के एक करोड़ लोगों को निजी अस्पतालों के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा और तमाम तरह की मुश्किलें उठानी पड़ी। अपील कर्ता का कहना है कि इसके लिए आखिर कौन जिम्मेवार है? अपीलकर्ता ने उन सभी मरीजों का पैसा वापस करने की मांग की गई है जिनसे इन निजी अस्पतालों ने अत्याधिक वसूली की। याचिकाकर्ता ने यह भी सवाल उठाया है कि जब अन्य सभी सेवाओं के लिए रेग्यूलेटरी अथॉरिटी बनाई गई है तो इन निजी अस्पतालों पर निगरानी के लिए कोई रेग्यूलेटरी अथॉरिटी क्यों नहीं है?