चुनावी फैसलों का दौर

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उत्तराखंड की धामी सरकार इन दिनों अपने ताबड़तोड़ फैसलों के जरिए हर वर्ग को खुश करने में जुटी हुई है बीते कल कैबिनेट की बैठक में लिए गये तमाम निर्णयों से यह साफ झलकता है कि सरकार ने सौगातें बांटने के लिए अपने खजाने का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया हैं। अभी बीते दिनों सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय बढ़ाया था वही अब 25 हजार भोजन माताओं का मानदेय 2000 से बढ़ाकर 3000 और पीआरडी जवानों का मानदेय 500 रुपए प्रतिदिन से 570 रूपये प्रतिदिन कर दिया गया हैं। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए तथा पलायन को रोकने के लिए सरकार ने अब लीज पर ली गई जमीन पर भी होम स्टे खोलने की अनुमति देने के साथ—साथ इस पर दी जाने वाली सब्सिडी को भी 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत (अधिकतम 15 लाख) कर दिया गया है। सस्ता राशन विक्रेताओं को प्रति कुंटल 18 रूपये दिए जाने वाले लाभांश को अब 50 रूपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। बीते कल कैबिनेट की बैठक में जो सबसे अहम निर्णय लिया गया वह नई खेल नीति को मंजूरी दिया जाना है। राज्य सरकार की अगर यह खेल नीति ईमानदारी से धरातल पर उतारी जाती है तो राज्य के खिलाड़ियों को इससे न सिर्फ प्रोत्साहन मिलेगा अपितु उन्हें अपने कैरियर को संवारने का मौका भी मिलेगा। मुख्यमंत्री धामी ने दरियादिली दिखाते हुए खिलाड़ियों के लिए सरकारी खजाने का दरवाजा खोल दिया है। सरकार की यह नई खेल नीति प्रांत के सभी वर्गों के खिलाड़ियों को लाभ पहुंचाने वाली है। उदीयमान खेल प्रतिभाओं के उन्नयन की इस योजना के तहत आठ से १४ साल के 3900 बच्चों को तथा 14 से 23 वर्ष तक के 260 युवाओं को सरकार द्वारा 1500 और 2000 रूपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति दी जाएगी। नई खेल नीति के तहत खिलाड़ियों को ट्रैक सूट व खेल किट आदि मुफ्त प्रदान करने के साथ—साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेताओं को दी जाने वाली पुरस्कार राशि को बढ़ाने की व्यवस्था की गई है। सरकार हर साल प्रतिभाशाली छह खिलाड़ियों को हिमालय पुत्र पुरस्कार देगी वहीं प्रशिक्षकों को भी पुरस्कृत करने की व्यवस्था है। राज्य सरकार द्वारा खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में कोटे का लाभ भी दिया जाएगा। सरकार ने जो नई खेल नीति लागू की है उसे लेकर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों में खुशी की लहर है। लेकिन इस खेल नीति को ईमानदारी से धरातल पर उतारे जाने की जरूरत है। सरकार द्वारा अब हर वर्ग को खुश करने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। चुनावी दौर है ऐसे में यह भी स्वाभाविक है कि सरकार ताबड़तोड़ फैसले और सौगातों की बरसात तो किए जा रही है किंतु इसके लिए धन कहां से लाएंगे? यह सोचे जाने की भी जरूरत नहीं समझी जा रही है। बात अगर कल की कैबिनेट बैठक में वन विकास निगम में २ वर्ष की दैनिक श्रम की अवधि को एसीपी के तहत जोड़ने की बात करें तो इस फैसले से सरकार 24 करोड का अतिरिक्त व्यय भार बढ़ेगा जबकि धामी सरकार अब तक दर्जनों ऐसे फैसले कर चुकी है। अपने कार्यकाल के इन फैसलों को अगली सरकार को झेलना पड़ेगा इनमें से कितने फैसले अमल में आ सकेंगे। यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल चुनावी दौर में ताबड़तोड़ फैसलों का दौर जारी है। धामी 5 साल का काम 5 माह में निपटाने में जुटे हुए हैं।

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