वरिष्ठ कांग्रेसी नेता यशपाल आर्य जो 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे 2022 के चुनाव से पूर्व अपने विधायक बेटे के साथ कांग्रेस में लौट आए हैं। उनकी कांग्रेस में वापसी भाजपा के लिए बड़ा झटका इसलिए मानी जा रही है क्योंकि उत्तराखंड की राजनीति में यशपाल आर्य सबसे बड़े दलित नेता है और दलित मतदाताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है। उनके भाजपा में जाने से 5 से 6 फीसदी दलित वोट जो भाजपा की ओर खिसक गया था वह फिर कांग्रेस के पास आ जाएगा। उनकी कांग्रेस में वापसी इस बात कभी संदेश देती है की 2016 में जो 9 बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे वह भी कहीं न कहीं भाजपा की नीतियों और रीतियों से संतुष्ट नहीं है तथा उनके अंतर्मन में भी घुटन है जिसका प्रमुख कारण है भाजपा नेताओं द्वारा इन पूर्व कांग्रेसी नेताओं को न पचा पाना। यह पूर्व कांग्रेसी नेता आज भी पूरे मन के साथ भाजपा के साथ घुलमिल नहीं सके हैं। यशपाल आर्य अब इन नेताओं की पुनः कांग्रेस में वापसी का माध्यम बन सकते हैं। इन नेताओं में से अधिकांश नेता ऐसे हैं जो अपनी जीत का खुद ही गारंटी कार्ड है। भले ही इन सभी नेताओं की कांग्रेस में वापसी संभव न हो लेकिन अगर इनमें से आधे नेताओं की भी कांग्रेस में वापसी होती है तो वह भाजपा के हार की पटकथा लिखने के लिए काफी होगी। लेकिन इसके लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपने निजी स्वार्थ और अहम को त्यागना होगा। हालांकि वर्तमान समय में वह इसके लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं। आर्य अकेले कांग्रेस में नहीं आए हैं उनकी वापसी के साथ कांग्रेसी विचारधारा की वापसी कांग्रेस में हुई है। उनकी वापसी को लेकर कांग्रेस विधायक सरिता आर्य जैसे कुछ लोग भले ही स्वयं को असहज महसूस कर रहे हो लेकिन वह जिन कारणों को लेकर असहज है वह भी तो उनके निजी स्वार्थ ही हैं फिर अगर यशपाल आर्य अपने राजनीतिक हितों के मद्देनजर कांग्रेस में वापस आए हैं तो इसमें क्या बुराई है। वर्तमान दौर की राजनीति में सभी नेता अपने—अपने हितों की ही राजनीति कर रहे हैं। क्या 2016 में भाजपा के साथ जाने वाले कांग्रेसी नेता अपने निजी स्वार्थों के कारण भाजपा में नहीं गए थे। भले ही सूबे की राजनीति के लिए यह दल बदल अच्छे संकेत न सही लेकिन भाजपा ने सूबे में जो दलबदल का बीज बोया था उसकी फसल उसे न काटनी पड़े यह नहीं हो सकता। कांग्रेस को दल बदल के हथियार से घायल कर चुकी भाजपा को जब कांग्रेस द्वारा उसी की भाषा में जवाब दिया जा रहा है तो वह तिलमिला आ रही है। आर्य की वापसी से यह साफ हो गया है कि यह सिलसिला अभी यही नहीं रुकेगा। चुनाव में अभी चार—पांच महीने है। अभी यह उथल—पुथल और जोर पकड़ेगी। अकेले आर्य की वापसी ने कांग्रेस को इतना मजबूत कर दिया है कि 2022 का चुनाव भाजपा के लिए अब आसान रहने वाला नहीं है। उसके ऊपर से किसान आंदोलन महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे भी भाजपा को बड़ी चुनौती बनकर खड़े हुए हैं। अबकी बार 60 पार वाली भाजपा अब इस आर पार की लड़ाई में कितना पार पा पाती है समय ही बतायेगा।