आसान नहीं भाजपा की राह

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पिछले विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत के साथ सत्ता में आई भाजपा के लिए 2022 के चुनाव की राह उतनी आसान नहीं दिख रही है जैसा वह सोच रही है। भले ही भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट कितना भी बेहतर क्यों न हो लेकिन कोई भी पार्टी सिर्फ धनबल और चुनावी मैनेजमेंट के बूते पर चुनाव नहीं जीत सकती है जैसा कि हम अभी पश्चिम बंगाल के चुनाव में देख चुके हैं। जहां भाजपा ने अपनी चुनावी रैलियों और प्रचार—प्रसार में पैसा पानी की तरह बहाया तथा प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से लेकर भाजपा की पूरी फौज ने अपनी पूरी ताकत झोंक कर रखी थी। दरअसल भाजपा के नेताओं को ध्यान अपने प्रतिद्वंदी दंलो को तोड़फोड़ के जरिए कमजोर करने और चुनावी शोर गुल पर अधिक रहता है। उत्तराखंड में भी भाजपा ने इसी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। प्रीतम पंवार का भाजपा के साथ जाना और राम सिंह कैड़ा पर डोरे डालने के साथ भाजपा कांग्रेस में सेंधमारी की जिस तैयारी में जुटी है उससे भाजपा को उतना लाभ होने वाला नहीं है जितना नुकसान बाहरी नेताओं के पार्टी में आने से भाजपा कैडर के नेताओं व कार्यकर्ताओं की नाराजगी से नुकसान हो सकता है। जो भाजपा के कैडर कार्यकर्ता और नेता कई दशक के पार्टी का झंडा झंडा लेकर पार्टी के लिए काम कर रहे हैं उन्हें पीछे धकेल कर अगर अभी—अभी पार्टी में आए नेताओं को ज्यादा तवज्जो दी जाएगी तो यह उचित नहीं होगा। विधानसभा की 70 सीटों में से 35 से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां कि भाजपा के नेता अपनी इसी तरह की उपेक्षा का शिकार है। दर्जनभर सीटें तो ऐसी है जहां भाजपा के नेता कई साल से चुनावी तैयारियों में जुटे हैं लेकिन अब उन्हें अपना टिकट पाना मुश्किल दिख रहा है। इन नेताओं को अब अपनी पार्टी में आगे बढ़ने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है। टिकट के दावेदारों की इतनी बड़ी फौज भाजपा में खड़ी हो गई है कि हर सीट पर आधा—आधा दर्जन दावेदार हैं। टिकट भले ही किसी को मिले हर सीट पर यदि बगावत की स्थिति पैदा होगी तो आप अच्छे परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। आप भले ही पार्टी अनुशासन का कितना भी ढोल पीटते रहे या चुनावी गोटियां फिट करते रहे लेकिन बिना एकजुटता के कुछ भी संभव नहीं है। अगर भाजपा बेबी रानी मौर्य को हटाकर गुरमीत सिंह को राज्यपाल बनाकर यह सोचती है कि तराई क्षेत्र के सिख्ख मतदाताओं का वोट भाजपा की झोली में आ जाएगा तो यह सिर्फ ख्याली पुलाव पकाना ही है। भाजपा ने अपने 5 साल के कार्यकाल में क्या काम किया? इस पर मुख्यमंत्री बदलकर पर्दा नहीं डाला जा सकता। वहीं इस बार आम आदमी पार्टी जिसे भाजपा यह कहकर नकार रही है कि उसका राज्य में कोई वजूद नहीं है भाजपा और कांग्रेस दोनों का चुनावी गणित बिगाड़ने के लिए काफी है। कारण एक नहीं अनेक है जो भाजपा का इस चुनाव में कड़ा इम्तिहान लेने वाले हैं। इसलिए इस बार भाजपा की जीत की राह आसान नहीं रहने वाली है।

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