क्या उत्तराखण्ड पुलिस को पीटीसी में ट्रेनिंग के दौरान गोली चलाने की जगह जुआ खेलने और अपने सीनियर अफसरों से अभद्रता की टे्रनिंग दी जाती है? भले ही आपको यह सवाल अटपटा लग रहा हो लेकिन इस सवाल को इसलिए पूछा जा रहा है कि अभी एक घटनाक्रम में पत्नी की हत्या के प्रयास के आरोपी को गिरफ्तार करने मसूरी गयी पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर को गोली मारकर आरोपी फरार हो गया था जबकि साथ गये दो सब इंस्पेक्टरों द्वारा उसका कोई मुकाबला नहीं किया गया। क्या इन पुलिस वालों के पास पिस्टलें नहीं थी या फिर जो उनके पास पिस्टलें थी उन्हे चलाना इन पुलिस कर्मियों को नहीं आता था या फिर यह पिस्टलें खराब थी? अगर सब कुछ ठीक था तो हथियारों से लैस इन पुलिसकर्मियों ने फायरिंग करने वाले बदमाश पर गोलियंा क्यों नहीं चलाई। क्या उत्तराखण्ड के पुलिसकर्मियों को पीटीसी में आत्मरक्षा में गोली चलाने की बात नहीं सिखायी जाती है और उसकी जगह उन्हे सिखाया जाता है अगर पुलिस पर हमला हो तो जवाबी कार्यवाही मत करो या फिर उन्हे थाने और चौकियों में वर्दी पहन कर जुआ खेलने और शराब पीकर ड्यूटी करने की ट्रेनिंग दी जाती है। बीते कल ही हल्द्वानी में एसपी सिटी ने अपने औचक निरीक्षण में पुलिस कर्मियों को ड्यूटी देने की बजाय जुआ खेलते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। क्या यह पुलिस का हैरतअंगेज कारनामा नहीं है कि जो पुलिस जुआरियों को पकड़ कर जेल भेजने का काम करती है वही पुलिस बावर्दी थाने चौकियों में बैठ कर ही जुआ खेल रही है। एसएसपी ने इन पांच पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया है। सवाल यह है कि पुुलिस अपराध करें तो सिर्फ लाइन हाजिर और आम आदमी जुआ खेले तो जेल। क्या पुलिस कर्मियों के लिए अलग कानूनी प्रावधान है। अभी बीते दिनों राजधानी दून की पुलिस लाइन में दैनिक परेड के दौरान एक बिगुलर ने बड़े अधिकारियों के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार करने का मामला सामने आया था। जिस पर एसएसपी अजय कुमार ने सख्त कानूनी कार्यवाही के निर्देश दिये थे। पुलिस की कार्यश्ौली कैसी है या व्यवहार कैसा है? और पुलिस का अनुशासन कैसा है इस पर क्या कुछ कहा जाये। जो पुलिस खुद अनुशासित न हो उससे सामान्य नागरिकों के साथ उचित व्यवहार की क्या अपेक्षा की जा सकती है। अभी मेरठ में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था जब पुलिस एक चोर को गिरफ्तार करने पहुंची थी और जब चोर ने फायरिंग शुरू की तो पुलिस भाग खड़ी हुई थी। मसूरी गोलीबारी में घायल दरोगा अस्पताल में जिन्दगी की जंग लड़ रहे है। सूबे के पुलिस महानिरीक्षक का कहना है कि यह घटना पुलिस की घटिया तैयारी के कारण हुई। सवाल यह है कि अब दबिश व गिरफ्तारी के दौरान पुलिस कर्मियो को बुलेटपू्रफ जैकेट उपलब्ध कराने की बात कही जा रही है। क्या बुलेटप्रुफ जैकेट से बदमाशों पर गोलियंा चला करेगी। या फिर पुलिस वाले बुलेटपु्रफ जैकेट पहन लेगें तो अपराध रूक जायेगें। अगर ऐसा होता तो कश्मीर में तो अब तक अपराध व अपराधी सब निपट चुके होते। क्योंकि वहंा तो सभी बुलेटपु्रफ जैकेट पहनते है। असल समस्या पुलिस की टे्रनिंग में है। कहीं न कहीं पुलिस की टे्रनिंग मेंं कोई बड़ी कमी जरूर है जिसे दूर किये जाने की जरूरत है। सूबे का दरोगा भर्ती घोटाला भी पुलिस के इस हाल और स्थिति के लिए जिम्मेवार है। जब पैसे देकर दरोगा बनेंगे जिन्हे केस डायरी तक लिखने का सहूर न हो तो फिर और पुलिस की स्थिति क्या होगी। ऐसी स्थिति मे पुलिस या तो शराब पीकर वर्दी में झूमती मिलेगी या उगाही करती अथवा थाने चौकियों में जुआ खेलती या फिर बदमाशों के डर से दुम दबाकर भागती पुलिस ही देखी जा सकती है। इससे अगर खाकी की बदनामी होती है तो होती रहे।