उत्तराखंड की सियासत में इन दिनों सोने का बाजार गर्म है। चारों ओर से एक ही आवाज आ रही है कि सोना कैसा सोना है? इस सोने ने न सिर्फ सियासी हलकों में कोहराम मचा रखा है अपितु श्रद्धा और आस्था की देवभूमि में भी भूकंप ला दिया है। केदारधाम के गर्भ ग्रह को स्वर्णिम आभा से चमाचम करने के लिए जो सोना लगया गया है अब उसकी शुद्धता पर तमाम तरह के सवाल खड़े हो चुके हैं विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता जहां बद्री केदार समिति और भाजपा को इस मुद्दे को लेकर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं वही शंकराचार्य अविमुत्तQेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि यह सिर्फ आस्था के साथ एक बड़ा खिलवाड़ है बल्कि भगवान के साथ धोखा है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने अब इसकी जांच के आदेश देते हुए जांच समिति गठित कर दी है और कहा है कि जांच होने दीजिए सब कुछ सामने आ जाएगा। अगर इसमें कोई हेराफेरी हुई हो तो दोषियों को सजा मिलेगी। निश्चित तौर पर यह मामला इसलिए अधिक गंभीर है क्योंकि यह धर्म और आस्था से जुड़ा है। शंकराचार्य की आपत्ति और नाराजगी स्वाभाविक है आस्था के नाम पर अगर किसी भी तरह का भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की जाती है तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है? यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा ही कही जाएगी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा इस व्यवस्था को बदलने का प्रयास किया गया था देवभूमि के सभी चारों धामों सहित समस्त प्राचीन धार्मिक स्थलों का रखरखाव और प्रबंधन के लिए उन्होंने सरकारी नियंत्रण में लाने के जो प्रयास देवस्थानम बोर्ड बनाने के रूप में किए थे तो इसे लेकर तीर्थ पुरोहितों और पंडा पुजारियों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जो त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से हटाये जाने के कारणों में से एक था। चार धामों के तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों को व्यवस्थाओं में कोई परिवर्तन कतई भी गवारा नहीं है और छोटी—छोटी बातों को लेकर सरकार के खिलाफ अगर वह आंदोलनों पर उतारू हो जाते हैं तो उसके पीछे उनकी मनमानी जो वह अब तक करते रहे है ही सबसे प्रमुख कारण है चारधाम आने वाले श्रद्धालुओं के साथ अभद्र व्यवहार से लेकर दर्शन कराने के नाम पर जिस तरह की लूट खसोट के जो समाचार आते हैं वह यही बताने के लिए काफी है कि क्यों वह इस पुरानी व्यवस्था में बदलाव नहीं चाहते हैं अभी इसी यात्रा सीजन के प्रारंभिक दौर में धामों में क्यूआर कोड लगाकर दानदाताओं से दान लेने का जो मामला सामने आया था उसकी जांच कराई गई थी मगर जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की गई। अब जो सोने की जांच कराने की बात कही जा रही है वह कहां तक पहुंचती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन यह मामला सरकार और बद्री केदार समिति की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। क्या कोई दानदाता श्रद्धा व आस्था के नाम पर अपना नाम रोशन करने के लिए सोने की जगह पीतल या दोयम दर्जे का सोना दान कर सकता है? इसकी संभावनाएं बहुत कम है। दूसरा सवाल यह है कि दानदाता ने जिन लोगों को यह सोना दिया क्या उन्होंने इसकी शुद्धता की जांच परख की या नहीं? अगर इस सोने की गुणवत्ता में किसी तरह की धांधली की गई तो वह किस स्तर पर हुई वह कौन लोग हैं जिन्होंने इस तरह की घटिया हरकत की। या फिर इस सोने को लेकर जो सवाल उठाया जा रहा है कि यह सोना कैसे सोना है बेवजह ही कुछ लोगों द्वारा एक बड़ा मुद्दा बनाया गया है। इसका खुलासा होना ही चाहिए? यह मुद्दा देव भूमि की सभ्यता पर एक बड़ा कलंक का टीका है इसलिए इसकी निष्पक्ष जांच जरूरी है और अगर कहीं कुछ धांधली हुई है तो उन चेहरों का बेनकाब होना भी जरूरी है जो भगवान के घर भी चोरी कर सकते हैं और भगवान को भी धोखा दे सकते हैं। देवभूमि के सभी धाम सिर्फ उत्तराखंड के लोगों की ही नहीं देश की एक सौ 40 करोड़ जनता का आस्था का केंद्र है देश भर से करोड़ों लोग इन धामों में आते हैं। अगर इसमें रत्ती भर भी सच्चाई है तो फिर यह देव भूमि की संस्कृति के लिए बहुत अपमानजनक स्थिति होगी जिसका ढोल हम पीटते रहते हैं।