वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा बीते कल आजाद भारत के अमृतकाल का पहला और मोदी सरकार पार्ट टू का जो अंतिम पूर्ण बजट पेश किया गया है उसमेें वित्त मंत्री और उनकी टीम ने अपने आर्थिक कला कौशल को दिखाने में कोई कोर कसर उठाकर नहीं रखी गयी है। 2024 में होने वाले लोक सभा चुनावों के मद्देनजर इस बजट को जितना भी संभव हो सकता था उतना लोक लुभावन बनाने और विकासोन्मुखी बनाने का प्रयास किया गया है। यही कारण है कि इस बजट को लेकर आम तौर पर लोगों के मन में संतुष्टी का भाव दिखायी दे रहा है। बजट में क्या कुछ खास है यह जानने से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे आत्मनिर्भर भारत और एक ऐसा भारत जिसमें कोई गरीब नहीं होगा एक ऐसा भारत जिसे विकसित भारत कहा जायेगा। जैसी बड़ी कल्पनाओं को पूरे दम खम के साथ पीएम मोदी और उनकी टीम द्वारा लोगों के सामने पेश किया गया है। यह अच्छी बात है कि हम या तो खुद को धोखा देने का काम करते है या फिर दूसरे लोगों को। समावेशी विकास, वंचितों को वरीयता, बुनियादी ढांचा निवेश और क्षमता विस्तार, हरित विकास जैसी सात बड़ी बातों को सरकार का लक्ष्य बताकर उन्हे सप्तऋषि नाम देना और तमाम मोटे अनाजों के नाम गिनाकर श्री अन्न का नाम देना शायद इन क्षेत्रों के लिए किये जाने वाले कामों से जरूरी समझा गया है। ढांचागत क्षेत्र में 157 नर्सिगं कालेज और 50 एयरपोर्ट बनाने तथा सवा सौ के करीब रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण जैसे कामों का बजट में उल्लेख किया गया है। वहीं पीएम आवास योजना के लिए बजट में 66 फीसदी वृद्धि की गयी है। इससे किसी भी गरीब को यह भरोसा हो सकता है कि शायद उसे भी आने वाले समय में छत मिल जाये। लेकिन सवाल यह है कि जिस देश की 10 फीसदी से अधिक आबादी आजादी के 75 साल बाद भी बेघर हो तथा 60 फीसदी आबादी सरकार से मिलने वाले मुफ्त के राशन के भरोसे जिन्दा हो उस देश को अगर सरकार आत्मनिर्भर भारत बनाने या विकसित भारत बनाने अथव गरीबी रहित भारत बनाने का सपना दिखाया जा रहा हो तो इससे बड़ा झूठ और धोखा शायद और नहीं हो सकता है। सत्ता में बैठे लोग इस बात से खुश है कि देश की विकास दर कोरोना त्रासदी के बाद भी 7 फीसदी रहने की उम्मीद है बाजार की स्थिति नियंत्रण में है देश में बेरोजगारी की स्थिति क्या है? स्वास्थ्य सेवाओें की स्थिति क्या है? शिक्षा और साक्षरता की स्थिति क्या है? बढ़ती मंहगाई और जीएसटी का गरीब और व्यापारियों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ रहा है इस पर सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी जा रही है। सरकार ने टैक्स स्लैब बदलकर गरीब, मध्यम वर्ग और नौकरीे पेशा लोगों को कर से मुक्त कर दिया या थोड़ी रात दे दी। गरीबों को रोजगार का अवसर देने वाले मनरेगा का बजट आंवटन घटा दिया गया वहीं स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों को भी अपेक्षित बजट नहीं दिया बस सरकार ने हिसाब लगा लिया कि जीएसटी से 17 प्रतिशत और इन्कम टैक्स से 15 प्रतिशत और 34 फीसदी कर्ज और देय दाताओं से आ जायेगा। और हम गरीबी मुक्त भारत, एक ऐसा विकसित भारत बना डालेगें जहंा कोई समस्या होगी ही नहींं। अगर यह सरकार की बाजीगरी नहीं तो और क्या है?