दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल देहरादून आए और उन्होंने अपने पहले ही चुनावी दौरे में सूबे की दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को करंट का ऐसा जोरदार झटका दिया कि उनके होश गुम हो गए। उत्तराखंड में जोर—शोर से चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर चुकी आम आदमी पार्टी ने चुनाव से पहले ही यह बता दिया है कि इस बार वह भाजपा और काग्रेस की दाल आसानी से नहीं गलने देगें। कल अरविंद केजरीवाल ने हर घर को 300 यूनिट और किसानों को मुफ्त बिजली देने की जो घोषणा की है वह भले ही नेताओं के गले नहीं उतर रही हो लेकिन इसे केजरीवाल की गारंटी बताया जाना और यह कहा जाना कि हमने दिल्ली में जो करके दिखाया है वह यहां भी करके दिखाएंगे, लोगों को इस बात का भरोसा जरूर दिलाता है कि यह सिर्फ एक चुनावी घोषणा नहीं है अगर आप की सरकार बनती है तो ऐसा होगा जरूर। उत्तराखंड में कभी कोई तीसरा राजनीतिक विकल्प जनता के पास नहीं रहा है। बसपा और यूकेडी का सूपड़ा साफ होने के बाद सत्ता का खेल भाजपा व कांग्रेस तक ही सिमट कर रह गया है। भाजपा और कांग्रेस बारी—बारी से आते हैं और अपना खेल खेल कर चले जाते हैं। यह पहला मर्तबा होगा जब जनता को आप एक तीसरे विकल्प के तौर पर मिलेगी। अभी बीते दिनों आप के नेता मनीष सिसोदिया दून आये थे। जिन्होंने भाजपा सरकार के नेताओं को खुली बहस की चुनौती दी थी उन्होंने कहा था कि सूबे की सरकार ने 5 साल में अगर पांच काम भी किए हैं तो वह उन्हें बताएं? वह इस मुद्दे पर भाजपा नेताओं से खुली बहस को तैयार हैं। सूबे के नए मुख्यमंत्री विज्ञापनों में सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास की बात कह रहे हैं उन्होंने विकास को अपनी सर्वाेच्च प्राथमिकता बताया है। सवाल यह है कि अगर भाजपा ने इन 5 सालों में कुछ विकास किया होता तो उन्हें आज बिना मांगे ही सबका साथ भी मिल गया होता और सबका विश्वास भी। उन्हें यह कहने की जरूरत ही नहीं होती की मैं आपको विश्वास दिलाता हूं के विकास मेरी सर्वाेच्च प्राथमिकता है। वह खुद भी इस बात को जान समझ रहे हैं कि न सबका साथ उनके साथ है न उनकी सरकार ने सबका विकास किया है और वह सबका विश्वास खो चुके हैं। राज्य के ऊर्जा मंत्री डॉ हरक सिंह ने जो 100 यूनिट तक बिजली देने की घोषणा की है अगर वह चुनावी घोषणा नहीं है तो चुनाव से पूर्व सरकार इसे लागू करके दिखाएं। सच यही है कि यह सिर्फ हवा हवाई बातें हैं अगर भाजपा सरकार को ऐसा कुछ करना होता तो 4 साल पहले कर दिया होता। आम जीवन में ही नहीं राजनीतिक जीवन में भी भरोसे और विश्वास की सबसे अहम भूमिका होती है। लोकलुभावन नारे और वायदे और घोषणाओं का खेल बहुत हो चुके है यह बात अब नेताओं को भी समझ आ जानी चाहिए। देखते हैं कि केजरीवाल का यह बिजली करंट सूबे की राजनीति में क्या गुल खिलाता है? इतना जरूर है कि इस जोर के झटके ने सूबे की राजनीति में हलचल जरूर पैदा कर दी है।