कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश के सभी प्रांतों में अनलाक की प्रक्रिया गतिमान है। भले ही देश भर में अब हर रोज संक्रमितों की संख्या में निरंतर कमी आ रही हो तथा यह साठ हजार प्रतिदिन तक आ गई हो लेकिन हर रोज अभी भी डेढ़ हजार से अधिक लोगों की मौत हो रही है। वहीं उत्तराखंड के कई जिलों में संक्रमितों की संख्या शुन्य हो गई है। लेकिन अभी भी लगभग डेढ़ सौ केस रोज आ रहे हैं तथा आठ—दस लोगों की मौत हर रोज हो रही है। वर्तमान स्थिति से यह साफ दिखाई दे रहा है कि अभी कोरोना खत्म नहीं हुआ है। दूसरी अहम बात यह है कि विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा कोरोना की तीसरी लहर छह से आठ सप्ताह के बाद आने की संभावनाएं जताई जा रही है। भले ही राज्य सरकारों द्वारा अनलॉकिंग की प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से धीरे—धीरे आगे बढ़ाया जा रहा हो, लेकिन अगर तीसरी लहर सिर्फ एक या डेढ़ माह बाद ही आनी है तो एक बार फिर इस अनलॉक प्रक्रिया के पूरी होने से पहले लाकडाउन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, जो अत्यंत ही चिंताजनक बात है। तीसरी लहर के दौरान जिस डेल्टा वेरियंट के प्रभावी होने का खतरा बताया जा रहा है उसे अब तक तमाम वेरियंट से अधिक घातक होने की बात जी कहीं जा रही है। कुल मिलाकर भविष्य की संभावनाएं अच्छी दिखाई नहीं दे रही है। देश में वैक्सीनेशन ड्राइव जिस गति से चल रहा है उस गति से देश के सभी लोगों का व्यत्तिQ वैक्सीनेशन होने में अभी सालों का समय लगना तय है, तब तक कोरोना की कितनी लहरों का सामना करना पड़ेगा तथा कोरोना कितने रूप बदलेगा? इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। पहली लहर के दौरान देश में जान है तो जहान है को प्राथमिकता दिए जाने के कारण अर्थव्यवस्था को भारी आर्थिक नुकसान हुआ दूसरी लहर में जान भी और जहान भी के फार्मूले को अपनाया गया लेकिन इस दौर में जान की भारी क्षति हुई लेकिन जान को होने वाले नुकसान को नहीं रोका जा सका। भले ही आर्थिक नुकसान की दर में थोड़ी कमी रही सही लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान से नहीं बचाया जा सका। सवाल यह है कि अब जिस तीसरी लहर की बात कही जा रही है उससे बचने या उसके प्रभाव को कम करने के लिए किस नए फार्मूले की जरूरत होगी। देश की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुका है तथा लोग इसके आफ्टर इफेक्ट की मार झेल रहे हैं। कुछ राज्य तीसरी लहर से बचाव के प्रबंधन में जुटे हैं तो कुछ अभी लापरवाह बने हुए हैं। अनलाक की प्रक्रिया में आम लोगों की लापरवाही भी साफ देखी जा सकती है। जबकि अभी भी पहले से अधिक सतर्कता की जरूरत है। उत्तराखंड सरकार को ऐसी स्थिति में न चारधाम यात्रा शुरू करने के बारे में सोचना चाहिए और न अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ भाड़ जमा होने वाली गतिविधियों की अनुमति देनी चाहिए।