यूं तो आजादी के 75 सालों में देश के लोकतंत्र ने अनेक ऐसे उतार—चढ़ाव देखे हैं जिन्हें काला दिन और काले इतिहास का नाम दिया जाता रहा है वर्तमान में जैसा देश की संसद में हुआ है वैसा इससे पूर्व कभी नहीं देखा गया। हमें उत्तर प्रदेश विधानसभा में हुए खूनी संघर्ष की तस्वीरें भी याद हैं और बिहार विधान सभा में महिला विधायकों को मारे जाने और घसीटे जाने की घटनाएं भी याद है लेकिन बीते दिन राज्यसभा में हुई घटनाओं की तुलना इनसे नहीं की जा सकती है। यह देश के संसदीय इतिहास पर लगा एक ऐसा धब्बा है जिसे अब कोई भी साफ नहीं कर सकता है। भले ही सत्ता और विपक्ष इसके लिए एक दूसरे को जिम्मेदार बताकर अपनी बेशर्मी का फूहड़ प्रयास कर रहे हो लेकिन राजनीति का यह रूप देश को कतई भी गवारा नहीं है। सवाल यह नहीं है कि ऐसा किसने किया बल्कि सवाल यह है ऐसा हुआ क्यों? जब सत्ता विपक्ष को अपनी बात न कहने दे या उसे अनसुना कर दे तब यह स्वाभाविक है कि ऐसी अराजक स्थितियंा ही पैदा होंगी। संसद के बाद अब सड़कों पर संग्राम देखा जा रहा है इस बेशर्मी की हद यह है कि कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उससे गलती हुई है। संसदीय परंपराओं व संसदीय मूल्यों और मर्यादाओं की बड़ी—बड़ी बातें करने वाले हमारे माननीयों को इस बात की भी कोई परवाह दिखाई नहीं दे रही है कि जनता उनके इस तरह के आचरण के बारे में क्या सोच रही है? और इसका देश विदेश में क्या संदेश जा रहा है? एक तरफ जहां सत्ता की तानाशाही तीखे तेवर में आती दिख रही है तो वहीं दूसरी तरफ अभिव्यत्तिQ की आजादी पर भी हमले शुरू हो गए हैं विपक्ष के सैकड़ों नेताओं के ट्विटर एकाउंट पर ताले डाले जाना इसकी शुरुआत के तौर पर देखा जा सकता है। अब कांग्रेस इसके खिलाफ आंदोलन की तैयारी में जुट गई है। सवाल यह है कि क्या सत्तापक्ष जिसके पास किसी भी कानून को पास कराने के लिए प्रचंड बहुमत की स्थिति है उसे यह सब करने की क्या जरूरत पड़ी है? कहीं इस प्रचंड बहुमत का ही इम्पेक्ट तो नहीं है जो सत्ता पक्ष को तानाशाही की ओर और समाज को धार्मिक कटृरता की ओर ले जा रहा है? अगर यह सच है तो सत्ता में बैठे लोगों को इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा वाले उस दौर को भी जरूर याद कर लेना चाहिए जिसने देश को इमरजैंसी की भट्टी में झौंक दिया था तथा उसकी उस परिणीति को भी नहीं भूलना चाहिए जब कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था जिसका दंश अब वह झेल रही है। देश की जनता के लिए संविधान और लोकतंत्र से सर्वाेपरि कुछ भी नहीं है।