दिल्ली/देहरादून। बढ़ते राजनीतिक अपराधीकरण पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज सुनाई गये एक फैसले में कहा गया है कि अब किसी भी सरकार या संस्था या व्यक्ति विशेष द्वारा सांसद और विधायकों पर किए गए मुकदमे वापस नहीं लिए जाएंगे। किसी भी सांसद या विधायक के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए हाईकोर्ट से इसकी अनुमति लेना अनिवार्य होगा। जिसके लिए हाईकोर्ट में एक विशेष पीठ गठित की जायेगी।
यहां यह उल्लेखनीय है कि सत्ता परिवर्तन के साथ राजनीतिक दल और नेताओं द्वारा अपने दल के नेताओं के खिलाफ दायर मुकदमों को वापस ले लिया जाता था जिसके कारण सांसद और विधायक अपने खिलाफ दायर मुकदमों को बहुत हल्के में लेते थे या यह कहे कि उन्हें कानून या पुलिस का कोई भय होता ही नहीं था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायधीश एनबी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने आज एक मामले की सुनवाई करते हुए फैसला लिया है कि विधायकों और सांसदों के खिलाफ दायर होने वाले किसी भी आपराधिक मुकदमे को कोई भी सरकार या संस्था व व्यक्ति विशेष वापस नहीं करा सकेगा। इसके लिए हाईकोर्ट की स्वीकृति लेना जरूरी होगा। हाई कोर्ट की विशेष पीठ को यह बताना होगा कि किस आधार पर क्यों मुकदमा वापस लिया जाए? इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में यह भी कहा गया है कि सांसद व विधायकों के मुकदमों की सुनवाई कर रही अदालतों के न्यायाधीशों को भी अगले आदेश तक नहीं बदला जा सकेगा।
एक अन्य ऐसे ही मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी राजनीतिक दल द्वारा किसी भी नेता को अपना प्रत्याशी बनाए जाने के 48 घंटों के अंदर उससे संबंधित सभी मामलों की जानकारी कोर्ट से साझा करना जरूरी होगा। तथा यह जानकारी अपने पोर्टल और सोशल साइट पर भी सार्वजनिक करनी होगी। जिससे प्रत्याशी के अपराधिक इतिहास के बारे में जनता को जानकारी हो सके।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सन 2018 में दी गई एक जानकारी के मुताबिक देश में पूर्व व वर्तमान विधायक और सांसदों के खिलाफ देश की विभिन्न अदालतों में 4122 मामले लंबित थे जो 2020 में 17 प्रतिशत बढ़कर 4860 हो गए। उत्तराखंड में कई विधायक—सांसद ऐसे हैं जिनके खिलाफ कई आपराधिक मामले चल रहे हैं।