नई दिल्ली/देहरादून। उत्तराखंड भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी उठापटक का दौर थमता नहीं दिख रहा है। सीएम तीरथ सिंह रावत को शीर्ष नेताओं द्वारा अभी दिल्ली में ही रुकने और सतपाल महाराज तथा धन सिंह रावत को दिल्ली बुलाए जाने की खबरों को लेकर एक बार फिर राजनीतिक हलकों में किसी बड़े घटनाक्रम के बारे में चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है।
भाजपा के सामने सीएम तीरथ को उपचुनाव लड़ाने और जिताने की चुनौती तो है ही साथ ही अपने पूरे कार्यकाल में किए गये विकास कार्यों से जनता को संतुष्ट करने और 2022 के चुनाव में जनता से मोहर लगवाने की भी चुनौती है। चार साल के कामकाज से असंतुष्ट भाजपा के शीर्ष नेताओं ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम और बंशीधर भगत को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया था। लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी हाईकमान को राज्य की सरकार और संगठन के बारे में जो खबरें मिल रही है वह संतोषजनक नहीं बताई जा रही है। जिसे लेकर भाजपा हाईकमान की चिंता बढ़ गई है।
मुख्यमंत्री तीर्थ सिंह रावत कहां से चुनाव लड़ें अभी तक भाजपा इस पर कोई निर्णय नहीं कर सकी है जबकि उन्हें पद ग्रहण किए हुए साढ़े तीन माह हो चुके हैं और उनके पास चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ ढाई माह का समय ही बचा है। वहीं इस मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा संवैधानिक सवाल खड़ा किए जाने से कि अब जब विधानसभा का कार्यकाल एक साल का भी नहीं बचा है वह चुनाव लड़ ही नहीं सकते? भले ही इस पर फैसला चुनाव आयोग ही करेगा। लेकिन जैसे—जैसे समय कम हो रहा है आशंकाएं बढ़ती ही जा रही है। संवैधानिक संकट की स्थिति में क्या होगा? अलग बात है किंतु राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपा जान बूझकर इस संकट को पैदा कर रही है भाजपा की राजनीति व रणनीति क्या है यह तो भाजपा ही जाने लेकिन इस हालात में जब तीरथ रावत पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के कामों को कंडम साबित कर चुके हैं। तमाम निर्णयों को पलट चुके हैं। दायित्व धारियों के दायित्व छीन चुके हैं। पार्टी के अंदर नेताओं व कार्यकर्ताओं के बीच अदावत भी बढ़ी है। ऐसे में अब भाजपा हाईकमान कुछ नया और बड़ा करता भी है तो वह आश्चर्यजनक नहीं होगा। लेकिन स्थिति सीएम तीरथ की आज या कल होने वाली दूसरी मुलाकात के बाद ही साफ हो सकेगी।