चार महीने से भी कम समय में दो बार मुख्यमंत्री बदलने वाले भाजपा और उसके नेता भले ही इसके पीछे संवैधानिक संकट का हवाला देकर सत्य को छिपाने का प्रयास कर रहे हो लेकिन आम आदमी इसके पीछे छुपे कारणों को समझ रहा है। इस तरह के परिवर्तनों के पीछे भले ही भाजपा अच्छे परिणामों की उम्मीद लगाए बैठी हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। चार साल के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह को जब कुर्सी से हटाया गया तो उनके हर बयान से असंतोष और बगावत झलकती देखी गई। तीरथ रावत को सीएम पद से हटाए जाने की जो खुशी उनके चेहरे पर दिखी वह नए सीएम बने पुष्कर धामी से भी कहीं अधिक थी। शायद उन्हें ऐसा लगा कि बीसी खंडूरी की तरह पार्टी फिर उन्हें ही दोबारा सीएम बना सकती है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कारण जो भी रहा हो लेकिन स्वयं को बलि का बकरा बनाए जाने से तीरथ रावत भी खुश नहीं है। भले ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पुष्कर धामी के शपथ ग्रहण से पहले सूबे के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी को दबाने में सफलता हासिल कर ली हो लेकिन जिन नेताओं को सीएम पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था उनकी नाराजगी अभी भी बरकरार है। भले ही कल उन्होंने धामी के साथ मंत्री पद की शपथ ले ली हो। ऐन चुनाव पूर्व किए गए इन परिवर्तनों से प्रदेश भाजपा के नेताओं के बीच भारी असंतोष भर दिया है असंतोष की यह चिंगारी कब शोला बन जाए इसके बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है। पुष्कर धामी जिन्हें काम करने के लिए मात्र चार—पांच महीने का समय मिला है वह क्या काम कर पाएंगे सिर्फ यही सवाल नहीं है उससे भी बड़ा सवाल यह है कि वह अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को कैसे एक सूत्र में बांधे रख पाते हैं? राज्य मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ मंत्रियों को महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा सौंप कर क्या वह उनके असंतोष को कम कर पाएंगे? ऐसा संभव नहीं दिखता है। क्योंकि कुछ बड़े और अनुभवी नेताओं को कम उम्र व अनुभव वाले पुष्कर धामी की लीडरशिप कतई नहीं पच पा रही है। यह अलग बात है कि वह खुलकर इसका विरोध नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा भीतर घात की शिकार नहीं होगी इसकी संभावनाओं से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। धामी के युवा चेहरे पर दांव खेलकर भाजपा ने राज्य के युवाओं को खासकर एबीवीपी कार्यकर्ताओं को जरूर एक संदेश दिया है कि भाजपा में उनका भविष्य सुरक्षित है। लेकिन सूबे के युवाओं को अपने साथ लाने के लिए युवा सीएम को भी उनके लिए इन 4 माह में बहुत कुछ करना होगा। जहां तक आम जनमानस की बात है कि वह भाजपा द्वारा इस चेहरे बदले जाने पर क्या सोचता है? दो दिनों में सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने वाले मैसेज यह बताने के लिए काफी है। 2022 के चुनावी लाभ के लिए किए गए इस नेतृत्व परिवर्तन से भाजपा को क्या मिल पाता है इसका फैसला चुनाव परिणाम ही करेगा।