आखिर कब सीखोगे सड़क पर चलना

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शासन प्रशासन की सभी कोशिशें बेकार
यातायात नियमों का पालन सभी की जिम्मेदारी

देहरादून। आपकी लाख सतर्कता और नियमों के अनुपालन के बाद आप कहां और कैसे तथा कब सड़क हादसे का शिकार हो जाएं इसका कुछ भरोसा नहीं होता क्योंकि लोग आजादी के 75 साल बाद भी प्रशासन की तमाम कोशिशों और सख्त कानूनों के बावजूद भी सड़कों पर चलना नहीं सीख सके हैं। सवाल यह है कि आखिर लोग कब सड़कों पर चलना सीख सकेंगे।
उत्तराखंड की राजधानी दून जिसे पढ़े—लिखे सभ्य लोगों का शहर कहा जाता है लेकिन यातायात नियमों की अगर सही स्थिति का परीक्षण किया जाए तो यह अति पिछड़ों में ही शुमार होगा। दून अब 50 साल पहले वाला दून नहीं रहा। जहां वाहनों की संख्या अत्यंत कम थी लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी हैं। आजादी के साथ सड़कों पर वाहनों का दबाव भी दो दशक में दो सौ प्रतिशत तक बढ़ गया है। हर रोज सैकड़ों नए वाहनों का रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं। सड़क हादसों में उसी गति से वृद्धि हो रही है।
अफसोस जनक यह है कि हमें न तो अपनी जान की सुरक्षा की परवाह है और ना दूसरों की। सड़क किसी व्यत्तिQ विशेष के क्षेत्र में नहीं आती है। जैसे सभी को सड़क पर चलने का अधिकार है। वैसे ही यातायात नियमों का पालन भी हर एक आदमी का कर्तव्य है। यातायात नियमों की जानकारी और उनका पालन हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। प्रशासन और पुलिस बीते दो दशकों से तमाम तरह के प्रयास और प्रयोग करके थक चुके हैं लेकिन वह भी लोगों को यह नहीं सिखा सके कि उन्हें सड़कों पर कैसे चलना है। यहां के लोगों को अभी तक चौक चौराहों पर स्टॉप लाइन पर रुकना तक नहीं आया है। वह कई बार तो पुलिस बूथ के करीब आकर वाहन रोकते हैं।
येलो लाइट का क्या मतलब होता है लोगों को यह तक नहीं पता है। यलो लाइट होने पर वह सड़क पार करते देखे जा सकते हैं। यहां तक कि रेड लाइट होने के बाद तक चौराहों पर पार करने की कोशिश करते हैं। किसी चौराहे या तिराहे से उन्हें लेफ्ट जाना होगा तो राइट साइड खड़े हो जाएंगे और राइट जाना होगा तो लेफ्ट साइड खड़े हो जाएंगे। हेलमेट और सीट बेल्ट के मामले में भी लोगों की लापरवाही देखी जा सकती हैं। वनवे में रॉन्ग साइड चलना भी लोगों के लिए आम बात है। स्पीड लिमिट के बाद भूल जाइए। हालात यह है कि जिसे जहां जी दौड़ने भागने की जगह मिलती है भाग लेता है। भले ही कोई मरे या जिंदा रहे।
सड़क सुरक्षा को लेकर अभी 4 दिन पहले सुबह के मुख्य सचिव ने अधिकारियों को तमाम गाइडलाइन जारी करते हुए उनका अनुपालन सुनिश्चित करने की दिशा निर्देश दिए थे। सड़कों पर डिवाइडर में कहीं से लोग आपके सामने आ सकते हैं। पुलिस नियम तोड़ने वालों को कभी फूल देकर गांधीगिरी से समझाती है तो कभी किसी वाहन का चालान व वाहन सीज करने की सख्त कार्यवाही करके करती है लेकिन लोग हैं कि सड़कों पर कैसे चलना है यह सीखने को तैयार ही नहीं है। अच्छा है कि हम दून में हैं। दिल्ली या मुंबई में होते तो हर रोज पुलिस थाने में खड़े होते या जुर्माना भर रहे होते।

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