देहरादून। भले ही उत्तराखंड के नेता बात—बात में उत्तराखंडियत के समर्थन के कसीदे पढ़ते हो तथा उत्तराखंड की कला और संस्कृति के प्रचार—प्रसार के नए—नए तरीके ढूंढ कर लाते हो लेकिन उत्तराखंड खादी ग्रामोघोग बोर्ड की दुकानों पर अगर आप ढूंढने जाए तो आपको उत्तराखंड की पहचान रही गढ़वाली टोपी ढूंढे भी नहीं मिल पाएगी।
अपनी कला और संस्कृति के प्रचार—प्रसार पर सरकार भले ही करोड़ों खर्च कर रही हो तथा तमाम सहायता समूहों और संगठनों को काम पर लगा रखा हो जिन्हें सरकार बड़े—बड़े आर्थिक पैकेज दे रही हो और देश विदेशों से सहायता मिल रही हो लेकिन यह कितना अच्छा या कैसा काम कर रहे हैं यह देखने वाला कोई नहीं है। इनके जितने भी क्रय विक्रय केंद्र हैं आप किसी भी विपणन केंद्र पर चले जाइए कर्मचारी ऊंघते मिलेंगे और उनकी अपने ग्राहकों के प्रति कोई उत्सुकता दिखाई नहीं देगी। वह आपको चलता करने के लिए बता देंगे यहां नहीं है वहां चले जाइए। उन्हें अपनी पगार भर से लेना देना है किसी कला संस्कृति व उघम से नहीं। कल एक गढ़वाली टोपी की तलाश में बाजार छान मारा पर कहीं भी एक उत्तराखंडी टोपी ढूंढे नहीं मिली।