नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बलात्कार पीड़िताओं के लिए टू-फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इस अवैज्ञानिक तरीके से जांच करने वालों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि परीक्षण पीड़ित को फिर से आघात पहुंचता है। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा, यह सुझाव देना पितृसत्तात्मक और सेक्सिस्ट है कि एक महिला पर विश्वास नहीं किया जा सकता है जब वह कहती है कि उसके साथ केवल इसलिए बलात्कार किया गया क्योंकि वह यौन रूप से सक्रिय है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक आपराधिक मामले में निर्णय के क्रियात्मक भाग को पढ़ते हुए कहा, इस अदालत ने बार-बार बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में टू फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल की निंदा की है। तथाकथित परीक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह बलात्कार पीड़िताओं की जांच करने का एक आक्रामक तरीका है…इसके बजाय यह महिलाओं को फिर से पीड़ित और पुन: पीड़ित करता है। टू-फिंगर टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने पहले भी इसी तरह की तर्ज पर इस मामले पर विचार जारी किया था जब इस प्रथा को असंवैधानिक माना गया था। 2013 में जब शीर्ष अदालत ने सरकार से इसे बदलने के लिए कहा था तो उसने कहा था, निस्संदेह टू-फिंगर टेस्ट और इसकी व्याख्या बलात्कार पीड़ितों के निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती है। इस प्रकार से यह परीक्षण भले ही रिपोर्ट सकारात्मक हो, वास्तव में, सहमति के अनुमान को जन्म नहीं दिया जा सकता है।