भक्ति योग के द्वारा ही मन स्वच्छ और स्थिर हो सकता है

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देहरादून। ईश्वर एक जादूगर है। माया ही वह जादू है जिसमे हम सब विमोहित हो रहे हैं। ध्यान से देख उसकी जादूगरी को आज जीव माया के विभूषित होकर ही दुख भोग रहा है क्योंकि वह ईश्वर की भक्ति नहीं करता। माया की भक्ति करके वह विभक्त हो गया है। वह माया को अपनी मान बैठा है जबकि माया तो भगवान की है।
उक्त विचार ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने मेजर बिभूति शंकर ढोन्ढियाल की पुण्य तिथि पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन 86 डंगवाल मार्ग नेशविला रोड देहरादून में व्यत्तQ करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि यह मन एक सरोवर है संसार की वासना का व दुर्गुणों के कारण इसका जल अस्वच्छ और चंचल हो गया है भक्ति योग के द्वारा ही यह मन स्वच्छ और स्थिर हो सकता है जिसमें हम आत्म दर्शन कर सकते हैं। मात्र दृष्टा बनकर देखना ही सार है। ये माया के संस्कार तुम फिर आत्मसात कर लोगे फिर यह बड़े सौभाग्य से मिला मानुष जन्म यों ही व्यर्थ चला जायेगा। फिर वही जन्म—मृत्यु का चक्र चलता ही रहेगा। तुम कभी उभर नहीं पाओगे। हमें जड़भरत की तरह संसार की ओर से निर्माेही स्वयं को बना लेना है। जिससे सतत उसका ही चिंतन चलता रहे। वैसे तो हमारी यह सांसे भी हमें सोअहम की ध्वनि देते हुए सतत निरन्तर समझा रहे हैं कि मैं वही हूं, मैं वह ही हंू। अर्थात हमारी सांसों का आवागमन निरन्तर समझा रही है, सांस खींचो और छोड़ो तो प्रतीति हो जाएगा। फिर भी अपने नाशवान शरीर को अपना समझने की भूल कर बैठते हैं। यह कैसी भूल जन्म जन्मों से लग गयी है जो हमारा पीछा नहीं छोड़ती की जो हमारा नहीं है उसी को अपना समझ बैठे हैं।
इस अवसर पर विशेष रूप से रजनी कौल मोहन कृष्ण कौल जय दत्त बहुगुणा सरोज ढोन्ढियाल वैष्णवी कैप्टिन निकिता जगदीश हरिश्चंद्र गिरीशचंद्र सतीशचन्द्र कर्नल विकास नौटियाल राजेश पोखरियाल सीमा मुकेश राजपुर की पार्षद उर्मिला ढोन्ढियाल थापा कुसुम नेगी निर्मला गुसाईं ममता गुसाईं राधा थपलियाल आश्विनि मुंडेपी चन्दरबल्लभ बछेती संतोष गैरोला दमयंती देवी इंदु देवी नंदा तिवारी सोनिया कुकरेती विमला हेमंत सुचिवृता विवेकानंद खंडूरी रेखा बडोनी मंयक खण्डुरी पियूष चमोली मीना सेमवाल सरस्वती रतुडी मंजू बडोनी निरामला रावत कमलेश रावत आचार्य दामोदर सेमवाल दिवाकर आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य हिमाशु मैठानी आचार्य अंकित केमनी बिमला चढ्ढा विनोद चमोली सुनीता चड्ढा वीना चड्ढा आदि भत्त गण भारी संख्या में उपस्थित रहे।

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