लोकसभा की 49 सीटों के लिए आज पांचवे चरण में वोट डाले जा रहे हैं। इसके साथ ही लोकसभा का 80 फीसदी चुनाव निपट जाएगा महज 113 सीटों का चुनाव शेष बचेगा छठे और सातवें चरण के लिए। यूं तो चौथे चरण के मतदान के साथ ही बहुत हद तक इस चुनाव की दिशा और दशा के बारे में स्थिति साफ हो चुकी थी लेकिन अब मतगणना से आने वाले असली नतीजों के लिए भी बहुत लंबा इंतजार शेष नहीं बचा है ठीक 15 दिन बाद पता चल जाएगा कि भाजपा का 400 पार का नारा कितना सच था या फिर राहुल गांधी का 4 जून को मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे का दावा कितना दमदार है। राजनीतिक पंडित तो अपने—अपने मापदंडो के आधार पर इस चुनाव की समीक्षा करने में जुटे ही हैं इसके साथ ही सोशल मीडिया पर प्रायोजित एग्जिट पोल की भी बाढ़ आई हुई है। तमाम ज्योतिषाचार्य भी अपनी दुकानें खोले बैठे हैं और वह तमाम तरह की भविष्यवाणियां कर रहे हैं। सटृा और शेयर बाजार भी इस काम में पीछे नहीं है। नेताओं के दावों पर इसलिए भी भरोसा किया जाना संभव नहीं है क्योंकि वह भी एक दूसरे पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर जनता को यही संदेश देने का प्रयास करते हैं कि जीत तो वही रहे हैं। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत से लेकर ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठने वाले सवाल तो लगातार हावी रहे ही हैं इसके साथ ही निर्वाचन आयोग की भूमिका पर कोई कम सवाल नहीं उठाए गए हैं। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं ने जिस तरह से चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ाई थी और चुनाव आयोग मूक दर्शक बना रहा वह भी चर्चाओं के केंद्र में है। चुनाव आयोग द्वारा वोट प्रतिशत के आंकड़ों में मतदान के 8—10 दिन बाद तक किए जाने वाले बदलाव भी चुनावी धांधली की संभावनाओं को ही दर्शाता है। यहां तक की सुप्रीम कोर्ट तक में वह इसके बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। चुनाव में व्यापक स्तर पर काले धन का इस्तेमाल हुआ है। इसके भी तमाम प्रमाण चुनाव के दौरान सामने आए हैं। लेकिन यह तमाम बातें अब तक लगभग सभी चुनावों में समान रूप से देखी जाती रही है लेकिन सवाल यह है कि इन चुनावों के परिणामों पर इसका कितना प्रभाव पड़ता है यह 4 जून को ही पता चल सकेगा। इतना सब कुछ होने के बाद भी अगर एनडीए व भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ता है तो इसके मायने यही होंगे कि जनता में सत्ता के खिलाफ भारी आक्रोश था और वह भाजपा और मोदी सरकार के 10 सालों के काम से कतई भी संतुष्ट नहीं थी। इन दिनों जिस तरह से विपक्ष या इंडिया गठबंधन की जनसभाओं में उमड़ने वाली भीड़ से तो कुछ ऐसा ही संदेश मिल रहा है। अगर इंडिया गठबंधन भाजपा और एनडीए को सत्ता से बाहर कर पाता है तो यह किसी चमत्कार जैसा ही होगा। लेकिन भारत के लोकतंत्र में ऐसे चमत्कार की कोई नई बात नहीं है। इस चुनाव में मतदाताओं के कम रुझान के पीछे अब आरएसएस द्वारा भाजपा के साथ न दिए जाने की जो बात आ रही है अगर वह सच है तो फिर मोदी सरकार का जाना और इंडिया गठबंधन का सत्ता में आना तय है उसे कोई नहीं रोक सकता लेकिन अब सब कुछ 4 जून को ही तय होगा।