सहायता के नाम पर पीड़ितों का मजाक

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आपदा प्रभावितों को दी जाने वाली सहायता राशि में धामी सरकार ने बढ़ोतरी कर दी है। इस खबर से भले ही आपदा ग्रस्त क्षेत्र के लोगों को राहत मिली हो और वह सोच रहे हो इससे उनकी जिंदगी फिर से पटरी पर आ जाएगी। आपदा राहत के जो सरकारी मानक हैं उनके अनुसार इस आपदा राहत को ऊंट के मुंह में जीरा ही कहा जा सकता है। अब सवाल यह है कि सरकार ने इस जीरे में कितनी बढ़ोतरी की है। घरेलू सामान की खरीद के लिए 1200 रूपये बढ़ाकर इसे अब 5000 कर दिया गया है महंगाई के इस दौर में 5000 रूपये में आप क्या घरेलू सामान खरीद लेंगे 5000 में आपको एक गैस चूल्हा भी मिलना है। अगर आपका मकान आपदा में ध्वस्त हो गया है तो आप को डेढ़ लाख रुपया सरकार देगी घर तो क्या डेढ़ लाख में आप क्या एक टॉयलेट और बाथरूम भी बना पाएंगे? घर की मरम्मत का काम क्या 7.5 हजार में हो सकता है? सच बात यह है कि यह सहायता राशि आपदा प्रभावितों के साथ किसी मजाक अथवा जले पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। दिल्ली में सीएम केजरीवाल ने जब सत्ता संभाली थी तो एक पुलिसकर्मी की शहादत पर उन्होंने एक करोड़ रुपए मुआवजे का दिया था। शायद वह पुलिसकर्मी परिवार देश का पहला ऐसा खुशनसीब परिवार रहा होगा जिसे एक करोड़ रुपए मुआवजा मिला था। इसकी चर्चा काफी दिनों हुई थी। वैसे भी किसी की जान की कीमत क्या हो सकती है फिर भी एक करोड़ की राशि परिवार के आश्रितों के लिए बड़ा सहारा कहीं जा सकती है। उत्तराखंड सरकार इस आपदा में मरने वालों के परिजनों को चार लाख देगी। क्या यह चार लाख उनके लिए पर्याप्त सहायता कही जा सकती है। एयर कंडीशन ऑफिसों और घरों में बैठे अधिकारी और नेता एक एक महीने पगार और भत्तों में लाखों—लाख रुपए तो ले रहे हैं लेकिन आपदा में अपना सब कुछ गंवा देने वालों की सहायता के नाम पर दो—चार—दस हजार की मदद क्या इन पीड़ितों के साथ एक भद्दा मजाक नहीं है। इससे भी अहम बात यह है कि इन आपदा प्रभावितों तक आपदा राहत कब तक पहुंचेगी? पहुंचेगी भी या नहीं? इसकी न तो कोई समय सीमा तय है और न इसकी कोई गारंटी। इस सहायता राशि को हासिल करने के उन्हें औपचारिकताएं पूरा करने में ही पसीने छूट जाएंगे। मदद अगर समय से नहीं मिलती है तो उस मदद का सही मायने में मिलना न मिलना बराबर ही है। वर्तमान दौर चुनावी दौर है। इसलिए सरकार भी इस समय एक्शन में है अगर सामान्य दिनों की बात होती तो जो सहायता राशि में वृद्धि हुई है उसका तो सवाल ही नहीं उठता था। अब देखना यह है कि इस पर सिर्फ सियासत ही होती रहेगी या पीड़ितों तक सहायता राशि कब तक पहुंचेगी।

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