चुनावी दौर में उत्तराखंड सरकार सभी वर्गों को खुश करने में जुटी हुई है। इन दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर धामी सौगातों की ताबड़तोड़ घोषणाएं करने में जुटे हुए हैं। बीते कल उन्होंने राज्य कर्मचारियों और पेंशनरों को मिलने वाले महंगाई भत्ते को 17 फीसदी से बढ़ाकर 28 फीसदी करने की जो घोषणा की है उससे कर्मचारियों में खुशी की लहर है। होगी भी क्यों न यह कोई मामूली राहत नहीं है उनकी इस घोषणा से मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों के वेतन में 25 हजार प्रतिमाह व सचिव स्तर के अधिकारियों के वेतन में 15 हजार तक की वृद्धि होगी। हर कर्मचारी व अधिकारियों का वेतन 10 से 5 हजार तक बढ़ जाएगा। राज्य के 36 हजार कर्मचारी स्थित लाभान्वित होंगे। सरकार को इस पर 152 करोड रूपए अतिरिक्त खर्च करने होंगे। सवाल यह है कि सरकार अपने चुनावी लाभ के लिए व विरोध के दमन के लिए ऐसी सौगातों की घोषणाएं तो करती जा रही है लेकिन इनके लिए पैसा कहां से आएगा? एक तरफ सरकार अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं दे पा रही है। रोडवेज कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए बाध्य किया जा रहा है तथा रोडवेज की परिसंपत्तियों को बेचकर निगम का 520 करोड़ का घाटा पूरा करने की बात कही जा रही है वहीं सीएम आपदा कोरोना प्रभावितों की मदद पर, कभी पर्यटन कारोबारियों, तो कभी महिला स्वयं सहायता समूहों को तो कभी स्वास्थ्य सफाई कर्मियों को विशेष आर्थिक पैकेजों की घोषणा करने में जुटे हुए हैं। अब तक मुख्यमंत्री धामी द्वारा एक हजार करोड़ से अधिक के पैकेज और आर्थिक मदद की घोषणा की जा चुकी है। अगर सरकार के पास बहुत ज्यादा धन उपलब्ध है तो वह परिवहन निगम को डूबने से क्यों नहीं बचा रही है? सरकार को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि महंगाई सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए ही नहीं बढ़ी है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिक और कामगारों के जीवन पर महंगाई का असर इनसे भी ज्यादा पड़ रहा है। सरकारी कर्मचारियों को हर माह वेतन तो मिल ही जाता है। असंगठित क्षेत्र के लोगों को तो हर समय काम पाने के लिए भी जंग लड़नी पड़ती है। सरकार जिन 36हजार कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ता बढ़ाने की घोषणा कर चुकी है यह बात यहीं तो समाप्त हो नहीं जाएगी। अभी पुलिस ग्रेड पे और उपनल कर्मियों का मामला भी लंबित पड़ा है। चुनाव से पहले ही सरकार को इस पर भी फैसला लेना ही पड़ेगा। यही नहीं तमाम अन्य विभागों के कर्मचारी भी अपनी—अपनी मांगों का पुलिंदा लेकर इन दिनों सड़कों पर है उन्हें भी पता है कि चुनावी साल है सरकार से इस दौर में अगर कुछ मिल गया तो मिल गया। चुनाव होने के बाद 4 साल तक सरकार फिर किसी की कोई बात सुनने वाली नहीं है। चुनावी दौर में सौगातों की इस बरसात का भाजपा सरकार को चुनाव में कितना फायदा होगा यह तो समय ही बताएगा फिलहाल तो बस इन सौगातों का आनंद लीजिए।