राम भरोसे राजनीति कब तक?

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जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे, और अब की बार 60 पार के इलेक्शन सॉन्ग और नारे के साथ उत्तराखंड के चुनावी रण में उतरी भाजपा खुद ही इस बात का संदेश लोगों को दे रही है कि वह राम के नाम के सहारे चुनाव जीतने का ताना—बाना बुन रही है। अपनी सरकार के काम के सहारे चुनाव जीतने का भरोसा और विश्वास उसमें नहीं है। यह बड़ा अजीब सा लगता है कि राम कहीं चले गए थे और भाजपा उन्हें लेकर आई है। उससे भी ज्यादा अधिक अजीब सा यह लगता है कि आखिर इस देश में कब तक राजनीतिक दल जाति—धर्म और आस्था के मुद्दों पर राजनीति करते रहेंगे। देश के आम आदमी की समस्याओं पर कभी कोई सार्थक बात क्यों नहीं होती है? या कब होगी। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में भाजपा को जनता ने प्रचंड बहुमत 70 में से 57 सीटें देकर सत्ता में भेजा था अब अगर जनता उसे 60 के पार भी भेज दे तो वह ऐसा क्या कर डालेगी जो 57 सीटों के साथ नहीं किया जा सकता था। चुनावी साल के अंतिम कुछ महीनों में सूबे की सरकार के दो मुख्यमंत्री बदले गए? आम आदमी पूछ रहा है कि भाजपा को इसकी जरूरत आखिर क्यों पड़ी? इसका सही मायने में भाजपा के पास कोई जवाब है ही नहीं। मुख्यमंत्रियों के चेहरे और उनके फैसलों को बदलकर वह खुद ही यह साबित कर चुकी है कि 57 सीटों के प्रचंड बहुमत के बाद भी सरकार वैसा बेहतर काम नहीं कर सकी जैसा किया जाना चाहिए था। भाजपा कभी अच्छे दिन आने वाले हैं या काला धन लाने वाले हैं, देश के सभी गरीबों को हम अमीर बनाने वाले हैं जैसे जो नारे देती रही है वह आज खुद ही भाजपा के लिए उसका मखौल उड़ाने के सामान और जरिया बन चुके हैं। इस प्रदेश और देश भर की जनता नेताओं और राजनीतिक दलों की इस तरह की लफ्फे लफ्फाजियों से ऊब चुकी है। आज प्रदेश और देश भर में बेरोजगारों की फौज मारी—मारी फिर रही है लेकिन उन्हें रोजगार देने की कोई बात नहीं करता है, उल्टा भाजपा के सत्ता में बैठे नेताओं द्वारा उन्हें पकोड़े तलने और बेचने को ही रोजगार बनाने की नसीहतें दी जा रही है। सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली की बात किसी से भी नहीं छिपी हुई है और न शिक्षा की। लेकिन भाजपा के लिए यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है और न उसके पास यह बताने के लिए कुछ है कि उसने 57 सीटों के साथ सत्ता में आने पर क्या—क्या सुधार किए हैं। सवाल यह है कि आज जिस बेतहाशा महंगाई के कारण आम आदमी को दो जून की रोटी मिलना मुश्किल हो चुका है उसे मुट्ठी भर मुफ्त का अनाज देकर कब तक उससे उसका वोट लेने के लिए बाध्य किया जाता रहेगा। लेकिन विडंबना है कि आज भी इस पर कोई बात नहीं कर रहा है और जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे की बात ही हो रही है। अगर भाजपा के नेता ही राम को लाए हैं तो ठीक है, वह राम को ले आए और राम आ भी गए अब राम के लिए उनके नाम पर वोट मांगने का काम बंद करें और जनता की सुध ले। रही बात 60 पार की तो क्या जनता के 60 पार कराने से एक साल में चार मुख्यमंत्रियों को बदल कर नया इतिहास रचोगे।

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