राज्य प्राप्ति आंदोलन में मुजफ्फरनगर में शहीद हुए आंदोलनकारियों और सर्वस्व लुटाने वाली मातृशक्ति को न्याय दिलाने के लिए आज भी उत्तराखंड आंदोलनकारियों की न्याय के लिए लड़ाई जारी है। राज्य आंदोलनकारी इन 20 वर्षों में आज भी न्याय के लिए लगातार लड़ रहे हैं इतना ही नहीं आंदोलन में शहीद हुए आंदोलनकारियों के माता—पिता को पेंशन देने की लड़ाई भी लड़ी जा रही है। बस मुद्दा एक ही है और संगठन कई सारे। अपने अधिकारों , रोजगार और विकास के लिए जब पृथक राज्य की मांग हुई थी तो एक के बाद एक लोग जुड़ते चले गए और कारवां बनता गया। राज्य प्राप्ति के आंदोलन को भले ही लंबा समय हो गया हो लेकिन इस आंदोलन में शामिल रहे लोगों के लिए तो यह मानों कल की ही बात है। हर उम्र लोगों ने अपने राज्य की कल्पना कर इस आंदोलन को खड़ा किया था। एक दिशा दी थी और आंदोलन को उसकी मंजिल तक पहुंचाया था। इस राज्य को पाने के लिए कितने ही आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी जेल में रहे सरकार और पुलिस की प्रताड़ना सहित। मातृशक्ति का शोषण हुआ लेकिन आंदोलन नहीं रुका। इस सबके बावजूद जब राज्य का सपना साकार हुआ तो राज्य आंदोलनकारियों के लिए वह दिन किसी त्योहार से कम नहीं था। अपना राज्य मिलने के बाद यहां के लोगों को रोजगार और विकास की उम्मीद जागी थी लोगों को लगा कि अब अपना राज्य है तो सब मिलकर काम करेंगे। पलायन रुकेगा और पहाड़ की जवानी और पानी दोनों ही पहाड़ के काम आएंगे। लेकिन समय के साथ साथ ही उनकी इन उम्मीदों पर पानी फिरता चला गया। उत्तराखंड का विकास तो हुआ लेकिन पहाड़ों से पलायन नहीं रुक सका। आज भी युवा नौकरी की तलाश में पहाड़ों से उतर कर मैदानी क्षेत्रों में आ रहे हैं या दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। वही शहीद आंदोलनकारियों को न्याय दिलाने के लिए आज भी लड़ाई जारी है। आंदोलनकारियों पर गोली चलाने वाले पुलिसकर्मी और अधिकारी प्रमोशन पाकर सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। कई की तो मौत भी हो गई लेकिन शहीदों को आज भी न्याय नहीं मिल पाया है मातृ शक्ति के साथ अमर्यादित व्यवहार करने वाले पुलिसकर्मियों का बाल भी बांका न हो सका। राज्य आंदोलनकारी आज भी सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि दोषियों को सजा दिलवाने में सरकार मजबूत पैरवी करेगी लेकिन उपेक्षा और उदासीनता के चलते राज्य आंदोलनकारी आज भी न्याय के लिए अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं।