अतिक्रमण की बस्तियां हटाना संभव नहीं
584 बस्तियों का पुनर्वास असंभव है
नियमितीकरण पर राजनीति हावी
देहरादून। भले ही फिलहाल हल्द्वानी में अतिक्रमण पर बुलडोजर चलने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई हो लेकिन इस रोक से फिर एक बार यह सवाल खड़ा हो गया है कि देश और प्रदेश में सरकारी जमीनों की यह लूट खसोट आखिर कब तक जारी रहेगी और इसे कैसे रोका जा सकता है?
बात सिर्फ हल्द्वानी की नहीं है जहां 78 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण कर बनभूलपुरा और गफूर बस्तियों को हटाने पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से लेकर हर शहर में व्यापक स्तर पर ऐसे अतिक्रमण हैं जिन्हें हटाने की कवायदे तो जोर—शोर से शुरू होती हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहता है। अभी बीते सालों में हाईकोर्ट ने देहरादून के अतिक्रमण पर ऐसा ही फैसला सुनाया था। राजधानी के कुछ मुख्य मार्गों पर जोर शोर से कुछ दिनों यह अभियान चला भी लेकिन जब अवैध बस्तियों की बारी आई तो इस अभियान ने दम तोड़ दिया।
यहां यह उल्लेखनीय है कि राजधानी दून में कुल 129 अवैध बस्तियां हैं। जो बिंदाल और रिस्पना जैसी नदियों के प्रवाह क्षेत्र या फिर नालो खालो और वन भूमि पर अतिक्रमण कर बनाई गई है या फिर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर बसाई गई हैं। अभी बीते दिनों एमडीडीए द्वारा 28 हजार अवैध निर्माणों के बारे में नोटिस जारी किए गए थे। राज्य में कुल 13 जिले हैं लेकिन शहरी क्षेत्रों में कुल 584 अवैध बस्तियां हैं। राजधानी दून की इन अवैध बस्तियों के जब ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू होने वाली थी तो राज्य सरकार ने एक अध्यादेश लाकर तथा अदालत में हलफनामा देकर उन्हें बचा लिया था और इन बस्तियों के पूर्ण विस्थापन का भरोसा दिलाया गया था। सरकार का कहना था कि वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इन्हें घर देकर बस्तियों को खाली करवाएगी। लेकिन इस दिशा में अब तक वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी है। धामी सरकार द्वारा राज्य की इन सभी 584 अवैध बस्तियों के नियमितीकरण को विधेयक लाने पर विचार किया गया था सरकार चाहती थी कि 2016 से पहले बसी सभी अवैध बस्तियों को नियमित कर दिया जाए।
अगर उन अनियमित या अवैध बस्तियों को हटाया जाता है तो दून जैसे शहरों का एक चौथाई हिस्सा उजड़ जाएगा। इनका पुनर्वास भी आसान काम नहीं है सरकार आपदा की जद में आए एक गांव का तो विस्थापन करा नहीं पाती 584 बस्तियों का विस्थापन भला कैसे करेगी। उजाड़ा इसलिए नहीं जा सकता है क्योंकि 13 फीसदी वोटर इन्हीं बस्तियों में रहते हैं। ऐसे में इस समस्या का यही है कि सरकारी जमीनों की लूटपाट हो रही है तो उसे होने दो।