- मतगणना में एक दिन बाकी तैयारियां पूर्ण
- मनोज या फिर आशा पर बरसेगी बाबा की कृपा?
रुद्रप्रयाग। किस पर होगी बाबा की कृपा, मनोज रावत या फिर आशा नौटियाल पर इसका जवाब जानने के लिए सिर्फ एक और दिन इंतजार कीजिए। केदारनाथ सीट के चुनावी परिणाम को लेकर उत्सुकता सिर्फ भाजपा और कांग्रेस नेताओं तक सीमित नहीं है बल्कि इस चुनाव को अयोध्या (फैजाबाद) की संसदीय सीट से लेकर बद्रीनाथ के साथ जोड़कर देखा जा रहा है जो प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा और भाजपा के धार्मिक एजेंडे की सफलता व विफलता से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
भाजपा जो अभी मंगलौर और बद्रीनाथ उप चुनाव सत्ता में होने के बावजूद भी हार चुकी है उसके ऊपर केदारनाथ सीट पर जीतने का दबाव इसलिए भी बहुत ज्यादा है क्योंकि केदारनाथ में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जो पुनर्स्थापना कार्य कराए गए हैं उन्हीं के मुद्दे पर भाजपा ने यह चुनाव लड़ा है। डबल इंजन की सरकार और केदारपुरी के पुनर्निर्माण के बाद भी अगर भाजपा की हार होती है तो इसके विपरीत संदेश दूर तक जाएंगे। मुख्यमंत्री धामी ने इसलिए इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है तथा वह बड़े अंतर से जीत का दावा भी कर रहे हैं।
उधर कांग्रेस मंगलौर और बद्रीनाथ की जीत से मिली नई प्राण वायु को 2027 के विधानसभा चुनाव तक बनाए रखने की कोशिशों में जुटी है। कांग्रेस नेताओं को पता है कि अगर उन्होंने केदारनाथ चुनाव को जीत लिया तो इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक फायदा उन्हें निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में मिल ही सकता है इसके साथ ही 2027 के विधानसभा चुनाव में वह एक बार फिर सूबे की सत्ता तक आसानी से पहुंच सकती है। भारी अंतर विरोधों के बीच भी कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने इस चुनाव में न सिर्फ एकजुटता का भरपूर प्रदर्शन किया है बल्कि पूरी ईमानदारी और रणनीति के तहत चुनाव लड़ा है। जिससे यह मुकाबला अत्यंत ही कड़ा बन चुका है।
अब तक सभी 173 मतदेय स्थलों से ईवीएम मशीने लेकर पोलिंग पार्टियों रुद्रप्रयाग के खेल मैदान में बनाए गए मतगणना केंद्र पर जमा कर चुकी है। जहां 23 नवंबर की सुबह 7 बजे से मतों की गिनती शुरू होगी। 90 हजार 875 मतदाताओं वाली इस सीट पर 50 हजार के आसपास लोगों द्वारा अपने वोट डाले गए हैं जिनकी गणना में कुछ ही घंटे लगेंगे। अगर निर्दलीय प्रत्याशी कोई बड़ा फेरबदल नहीं कर सके तो इस सीट पर कांग्रेस व भाजपा के बीच दो—चार हजार के मतांतर से ही जीत का फैसला होने की उम्मीद है। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेताओं की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। जीत का सेहरा किसके सर सजेगा इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है। हां इस बात की जरूर गारंटी है कि इस जीत हार के मायने बहुत बड़े जरूर होंगे केदारनाथ का चुनाव परिणाम तय करेगा कि उत्तराखंड की राजनीति में आने वाला समय किसका रहने वाला हैै।





