व्यवस्थाएं कम यात्री अधिक
सड़कों पर लंबी—लंबी लाइनें
होटल, होमस्टे, गेस्ट हाउस फुल
देहरादून। जाम! जाम! जाम! जहां भी जाओ बस जाम ही जाम। बात चाहे मसूरी की हो, हरिद्वार की हो या फिर ऋषिकेश की अथवा बद्रीनाथ की हो या फिर केदारनाथ की, ओली की हो या फिर नैनीताल की। इन दिनों आप जिधर भी जाएंगे सिर्फ जाम ही जाम पाएंगे। या फिर जाम के झाम में फंसे पर्यटको की खीज और गुस्से का गुबार ही आपको देखने को मिलेगा।
दरअसल इस भीषण गर्मी के दौर में मैदानी क्षेत्र के लोगों को पहाड़ का आकर्षण यहां तक खींच लाता है। चार धाम यात्रा की बात हो या पर्यटन सीजन की, लाखों की संख्या में सैलानी और श्रद्धालु उत्तराखंड आते हैं। अभी सोमवती अमावस्या और गंगा दशहरे के अवसर पर हमने देखा कि 30 से 40 लाख के बीच श्रद्धालु और पर्यटक हरिद्वार पहुंचे। ठीक वैसा ही हाल चार धाम यात्रा का भी है। अब तक 20 लाख से अधिक लोग चार धाम यात्रा पर आ चुके हैं। सरोवर नगरी नैनीताल, हल्द्वानी और मसूरी में किस तरह से पर्यटकों की भीड़ उमड़ रही है। इससे इस भीड़ को नियंत्रित कर पाना पुलिस प्रशासन के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
न होटल और अतिथि गृह में जगह है न पार्किंग की कोई व्यवस्था। न खाने पीने का कोई सुनिश्चित इंतजाम। सड़कों पर कई—कई किलोमीटर लंबे जाम जैसे अब आम बात हो गई है। जो पर्यटक इस जाम के झाम में फंस जाते हैं उन्हें कई—कई घंटे तक बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल पाता। ऐसे में उनकी झुंझलाहट और आक्रोश स्वाभाविक है या फिर आपसी नोकझोंक और तकरार भी आम बात है। भीड़ में वाहनों की रगड़ा—रगड़ी या फिर पार्किंग को लेकर विवाद। जिसमें कब कहां किसकी जान पर बन जाए कुछ नहीं कहा जा सकता।
पर्यटकों और चारधाम यात्रियों की मानसिक स्थिति यह तक खराब हो जाती है कि वह स्वयं से ही पूछने लगते हैं कि वह घर से बाहर निकले ही क्यों? इससे तो अच्छा था घर पर ही रहते। यात्रा का मजा उनके लिए किसी सजा जैसा हो जाता है। भले ही सूबे का शासन—प्रशासन इसे लेकर खुश हो कि रिकॉर्ड पर्यटक व श्रद्धालु आ रहे हैं लेकिन इस बार अवस्थाओं की मार झेल रहे इन पर्यटकों व श्रद्धालुओं को जिस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही है वह उनकी जान पर भारी पड़ रही है। सीमित संसाधन और कम व्यवस्थाओं तथा अपार भीड़ के कारण हाहाकार मचा हुआ है। अभी 140 करोड़ है जब 160 करोड़ होंगे तब क्या स्थिति होगी? सोचनीय सवाल है।