नेपाल नहीं माना तो भारतीय गोरखाओं की भर्ती
नई दिल्ली। भारतीय फौज को गोरखाली जवानों की जरूरत है। या यह कहें कि भारतीय फौज के लिए गोरखाओं की अपनी अलग महत्वता है इसलिए हमें सेना के लिए हर हाल में गोरखाली जवान चाहिए, तो यह भी अनुचित नहीं है। यही कारण है कि हमारी केंद्र सरकार द्वारा नेपाल सरकार की तमाम उन आशंकाओं को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं जो अभी हाल में लांच की गई अग्निपथ योजना को लेकर जताई जा रही है।
उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा अभी अगस्त माह में नेपाल में दो भर्ती केंद्रों पर भर्ती की योजना बनाई गई थी लेकिन नेपाल सरकार द्वारा इसकी अनुमति न दिए जाने के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था। दरअसल नेपाल सरकार को 4 साल की सेवाओं को लेकर कुछ आपत्तियां थी वही उसके द्वारा इसे भारत नेपाल और ब्रिटेन के बीच हुई त्रिपक्षीय संधि 1947 का उल्लंघन बताया जा रहा है।
भारतीय सेना में सात गोरखा रेजिमेंट है जिनमें से छह स्वतंत्रता से पहले की है। 39 बटालियन है जिनमें कुल मिलाकर 32 हजार के करीब नेपाली गोरखा है। सवाल यह है कि जब नेपाली गोरखा पूर्व समय से भारतीय सेना का हिस्सा है तो फिर अब आपत्ति क्यों? भारत सरकार द्वारा नेपाल सरकार को यह समझाने और उसकी शंकाओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है कि अग्निपथ योजना में गोरखा जवानों को भी वह सब सुविधाएं मिलेंगी जो भारतीय जवानों को मिलेंगी, लेकिन अगर इसके बावजूद नेपाल की सरकार इसकी मंजूरी नहीं देती है तो भारत सरकार भारतीय गोरखा जवानों को भर्ती कर इसकी कमी को दूर करने का प्रयास करेगी। हालांकि यह काम मुश्किल जरूर होगा क्योंकि भारत में गोरखालियों की आबादी कम है इसलिए हर साल 20—25 हजार जवानों की जरूरत को पूरा करना आसान नहीं होगा। वही गोरखालियों की वीरता और कर्मठता के कारण सुरक्षा एजेंसियों में गोरखाली जवानों की मांग अधिक रहती है। लेकिन भारतीय सेनाओं को गोरखा जवानों की जरूरत है और वह इसे हर हाल में पूरा करना चाहती है।